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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि जस जस ससियर दिपत जग जय-जय जिन जन शरण।। इस दोहे में यमक अलंकार भी है साथ ही सारे वर्ण लघु हैं। आपकी कल्पनाशक्ति बड़ी तीव्र थी, साथ ही अभिव्यंजना शैली भी बहुत ही स्पष्ट प्रभावोत्पादक है। मन को जीतना यद्यपि कठिन है परन्तु युक्ति के आगे कठिन नहीं, इसी विषय को दृष्टान्त द्वारा समझते हुए कवि कहते हैं - ताम्र करे कलधौत रसायन, लोह को पारस हेम बनावे। औषध योग कली' रजतोत्तम, मूढ़ सुधी संग दक्ष कहावे। वैद्य करे विष को वर औषध, साधु असाधु को साधु करावे । त्यों मन दुष्ट को सुष्ट करे, ऋषि ता गुरु के गुण सेवक गावे ।।५।। साधु गुणमाला के अतिरिक्त आपकी ‘देवाधिदेवरचना' और 'देवरचना' ये दो काव्य कृतियाँ और उपलब्ध होती युक्त है। ___ पंच परमेष्ठी वंदना जैन समाज में उतनी लोकप्रिय हुई कि देवसी और रायसी आवश्यक में उसे प्रतिदिन पढ़ा जाता है। उदाहरण स्वरूप साधु-वंदना का यह सवैया देखिये आदरी संयम भार, करणी करे अपार, समिति गुपति धार, विकथा निवारी है। जयणा करे छ काय, सावद्य न बोले बाय, बुझाय कषाय लाय, किरिया भंडारी है।। ज्ञान भणे आठो याम, लेवे भगवंत रो नाम, धरम को करे काम, ममता निवारी है।। कहत तिलोक रिख, करमो को टाले विष ऐसे मुनिराज जी को, वंदना हमारी है।। साधु का त्याग सर्प की कैंचुली के समान है, जिसका त्याग कर दिया, उसे पुनः दृष्टि दौड़ाकर देखते भी नहीं, मात्र प्रभु के ध्यान में लीन रहते हैं, "कंचुक अहि त्यागे, दूरे भागे, तिम वैरागे, पाप हरे। झूठा परछंदा, मोहिनी फंदा, प्रभु का बंदा, जोग धरे।। सब माल खजीना, त्यागज कीना, महाव्रत लीना, अणगारं।। पाले शुद्ध करणी, भवजल तरणी, आपद हरणी, दृष्टि रखे। बोले सतवाणी, गुप्ति ठाणी जग का प्राणी-सम लखें। शिवमारग ध्यावे, पाप हटावै, धर्म बढ़ावे, सत्य सारं।।२ पूज्यपाद श्री तिलोक ऋषिजी महाराज द्वारा रचित साधु पद सवैया आप अपने समय के उत्कृष्ट कोटि के संत थे। वि.सं. १६०४ में जन्म लेकर १६४० कुल ३६ वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। कहा जाता है, कि १० वर्ष की रचना अवधि में आपने लगभग ६५ हजार काव्य पद लिखे। सभी रचनाएँ गेय हैं तथा विविध रस और अलंकार १. रांगा २. पंच परमेष्ठी छंद - १०वां ११वां पद १५२ ___प्राचीन जैन हिंदी साहित्य में संत स्तुति | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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