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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि जैन संस्कृति में नारी का महत्व - महासती डॉ. श्री धर्मशीला सन्नारी को जैनागमों में 'देव-गुरु-धम्मजण्णी', 'धम्म सहाइया,' 'चारुप्पेहा' आदि अनेक विशेषणों से विभूषित किया है। नारी कहीं उद्बोधन रूपा है तो कहीं सेवा की प्रतिमूर्ति । नारी-गरिमा का जैनदर्शन में सर्वत्र स्वर गुंजरित हुआ है। नारी, नर से अधिक धर्मपरायणा है एवं कर्तव्यशीला भी। विदुषी साध्वी डॉ. श्री धर्मशीलाजी म. ने अपने नारी विषयक आलेख में 'नारी-महिमा' का सांगोपांग विश्लेषण किया है। - सम्पादक विविधरूपा नारी ___ नारी धर्म पालन में, धर्म प्रचार में एवं धर्म को अंगीकार करने में पुरुषों से अग्रणी है। यद्यपि नारी के रूप, स्वभाव, शिक्षा, सहयोग एवं पद समय के अनुसार बदलते रहे हैं। जन्मदात्री माता से लेकर कोठे की घृणित व प्रताड़ित वेश्या के रूप में भी वह समय-समय पर हमारे । समक्ष आई है। यशोदा बनकर लालन-पालन किया है तो कालिका बनकर असुरों का संहार भी किया है, साक्षात् वात्सल्य की प्रतिमूर्ति भी रही है। समय व काल की गति अनंत व अक्षुण्ण है, इससे परे न कोई रहा है न रह सकेगा। कालचक्र से सभी बंधे हैं फिर भला कोई समाज या धर्म उससे विलग कैसे रह सकता है? नारी नर की अर्धांगिनी, मित्र, मार्गदर्शिका व सेविका के रूप में हमेशा-हमेशा से समाज में अपना अस्तित्व बनाती रही है किंतु कभी-कभी तुला का दूसरा पलड़ा अधिक वजनदार हुआ तो नारी को चार दिवारी की पर्दानसी, विलासिता, भोग की वस्तु मात्र, सेवा तथा गृहकार्य करनेवाली इकाई भी माना गया। कर्तव्यपरायण वनकर चुपचाप जुल्म सहना ही उसकी नियति बन गई व । बदले में उसे सिसकने तक का अधिकार भी नहीं रहा। अधिकार के बिना कर्तव्य का न ही मल्य रह जाता है न ही औचित्य किंतु समय-समय पर समाज में जागृति व क्रांति की लहर आयी जिसने नारी को उसके वास्तविक स्वरूप का बोध कराया। जैन धर्म और नारी जैन समाज में आदिकाल से ही नारी सम्माननीय व वन्दनीय रही है। कुछेक अपवाद छोड़कर नारी परामर्शदात्री व अंगरक्षक भी रही है। नारी अपने समस्त उत्तरदायित्व का निर्वाह करने के साथ ही साथ धर्मपालन, नियम, व्यवहार, स्वाध्याय उपवास आदि में अधिक समय देकर पुरुषों से कई गुना आगे हैं। ___ यदि हम समाज एवं राष्ट्र को प्रगति व उपलब्धि के मार्ग पर प्रशस्त करना चाहते है, यदि हम भगवान् महावीर की शिक्षाओं को व्यवहार में उतारना चाहते हैं, यदि हम समाज व देश में शिक्षा, अनुशासन भाईचारा व एकता का शंखनाद फूंकना चाहते है तो हमें नारी को उनके साधिकार व उनके उपयोग की स्वतंत्रता देनी होगी, उन्हें उनकी शक्ति, शौर्य, शील व तेज की याद दिलानी होगी। जैनधर्म हो या अन्य धर्म, नारी का झुकाव पुरुषों की तुलना में धर्म की ओर अधिक ही होता है। यदि हम वर्तमान परिस्थितियों में देखें तो पायेंगे कि सेठजी की अपेक्षा सेठानी जी नित्यमेव धर्म-कर्म. स्वाध्याय. नियमपालन, एकासना, उपवास आदि नियमित व आस्था से १३६ में नारी का महत्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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