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________________ इस शुभ प्रसंग पर अनेकों पदवियों से अलंकृत सरल स्वभावी, मृदुभाषी, स्पष्ट एवं निर्भीक वक्ता परमपूज्य गुरुदेव श्री सुमन कुमार जी म. सा. को मेरा विनम्र भक्तिभाव पूर्ण वन्दन और दीक्षा - स्वर्ण जयन्ति के अवसर पर अभिनन्दन । मुनि सुमनकुमार जी म. के दर्शन का सौभाग्य दक्षिण भारत में आपश्री के प्रवेश के पश्चात् हुआ । तबसे निरन्तर दर्शन का संयोग प्राप्त होता रहा है। धार्मिक कार्यों एवं समाज के उत्थान हेतु समय-समय पर आपसे चर्चा होती रही है। सन् १६६६ में आपका चातुर्मास मैसूर शहर में होने से तथा मैसूर संघ के मंत्री पद पर होने से संपर्क और अधिक गहराया कईं बातें जीवन उन्नति की आपसे सीखी। आप सरल हृदयी, सौम्य स्वभावी, तेजस्वी एवं ओजस्वी हैं। आपके समक्ष अधिकारी हो या कर्मचारी, श्री मन्त हो या सामान्य, निडरता से अपने सही- सुन्दर विचारों को प्रकट करना आपका उत्तम गुण है । आपकी प्रवचन - शैली अपने आप में भिन्न है । बड़े से बड़े विद्वान भी आपके दर्शनार्थ आते हैं । ज्ञान चर्चा आगम सम्बन्धी हो या सामाजिक हो, आप उसका सटीक उत्तर देते हैं । कई उलझी हुई समस्या को भी आपने आसानी से समझाया, सुलझाया, २४-१०-६६ को आपकी ४७ वीं दीक्षा जयन्ति महोत्सव पर मैसूर के युवराज एवं सांसद श्री कंठदत्त नरसिंहराज-वोडेयार मुख्य अतिथि के रूप में पधारे और मुनिश्री को हार्दिक बधाईयाँ दी। मुनि श्री के प्रवचन से काफी प्रभावित रहे। उन्होंने मुनिश्री से कुछ समय तक धर्म-चर्चा भी की। आपके चातुर्मास काल में मैसूर के सांसद, सभी विधायक, मेयर, महापौर, जिलाधीश, अधिकारी गण एवं विश्वविद्यालय के विद्वद् जनों का आगमन होता रहा जनोपयोगी सेवाएँ, विभिन्न कार्यक्रम निरंतर चलते ही रहे । आपने जैन आगमों की भाषा को जन-जन तक Jain Education International वंदन - अभिनंदन ! पहुँचाने की भावना से श्रीसंघ को प्रेरणा देकर एक विशाल 'प्राकृत भाषा एवं जैन सम्मेलन' आयोजित करवाया । सम्पूर्ण योजना में देश भर के कई प्राकृत-भाषाविद् जैन धर्म- दर्शन साहित्य के जानकार, विद्वद् जनों ने भाग लेकर दिनांक १६-१७ नवम्बर १६६६ के दिनों को एक अविस्मरणीय और ऐतिहासिक बना दिया। जिसके ही फल स्वरूप (२६-१-१६६७) को यहाँ पर 'भगवान महावीर प्राकृत भाषा जैन विद्यापीठ' की स्थापना हुई और लगातार अब तक प्रति शनिवार-रविवार को कक्षाएँ चलती आ रही हैं । १६ विद्यार्थी अध्ययन रत हैं। प्राकृत व्याकरण, जैन आगमों का अध्ययन इसमें करवाया जा रहा है। स्वाध्यायी बन्धुओं के निर्माणकार्य में इसका भविष्य अवश्य ही उज्ज्वल रहेगा। समय-समय पर मुनि श्री का आशीर्वाद - मार्गदर्शनप्रेरणा भी हमें मिलती रही है। मुनि श्री जी म. स्वयं प्राकृत भाषाविद् हैं। अंततः आपश्री स्वस्थ एवं नीरोग रहे ताकि हम और अधिक लाभान्वित हो सके। आप दीर्घायु हों, इसी भावना के साथ श्रद्धार्पण! वन्दन !! बी. ए. कैलाशचंद जैन, चेयरमेन, भगवान महावीर प्राकृत भाषा जैन विद्या पीठ, मैसूर ज्ञान - दर्शन - चारित्र की त्रिपथगा परम श्रद्धेय सलाहकार मंत्री मुनि श्री सुमनकुमार जी म. भगवान् महावीर की श्रमण-संस्कृति के सन्देशवाहक हैं। आप श्री ने श्रमण संस्कृति की शिक्षा-दीक्षा लेकर जीवनपर्यन्त संस्कृति, साहित्य, तत्त्वज्ञान, इतिहास, धर्मशास्त्र, ज्ञान-दर्शन- चारित्र आदि के प्रचार-प्रसार करने में ही आपने For Private & Personal Use Only २६ www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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