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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
श्रमण संस्कृति का हृदय एवं मस्तिष्क
- डॉ. रवीन्द्रकुमार जैन
श्रमण संस्कृति का अपना एक विशिष्ट स्थान है। इसका हार्द हैं - अहिंसा एवं मस्तिष्क है - अनेकांतदर्शन ! परिग्रही अहिंसक नहीं हो सकता और हिंसक अनेकांती नहीं बन सकता। अहिंसा और अनेकांत का अन्योन्याश्रित संबंध है। प्रो. रवीन्द्रकुमार जैन रहस्योद्घाटन कर रहे हैं - अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत सिद्धांतों का।
- सम्पादक
सभ्यता के समान संस्कृति का स्वरूप, परिभाषा एवं आदि।' वेब्सटर्स इन्टर नेशनल डिक्शनरी में संस्कृति के विधायक तत्त्व आज तक सर्वसम्मत रूप से स्वीकृत नहीं विषय में यह कथन है – “मस्तिष्क, रुचि और आचार हो सके हैं। पूर्व और पश्चिम के विद्वान् जन्मजात पारम्परिक व्यवहार की शिक्षा और शुद्धि । इस प्रकार शिक्षित और संस्कारों को, जन्मोपरांत सत्संग, विद्या एवं प्रतिभा से शुद्ध होने की व्यवस्था, सभ्यता का बौद्धिक विकास,
उद्भूत परिष्कृत जीवन को, महान् पुरुषों के गुणों और विश्व के सर्वोत्कृष्ट ज्ञान एवं कथित वस्तुओं से स्वयं को ., कार्यों के अनुकरण को संस्कृति कहते हैं। वस्तुतः संस्कृति परिचित कराना”।२ की चेतना इतनी व्यापक एवं गहरी है कि हम उसे
उक्त परिभाषाओं का तात्पर्य यह है कि मानव की जन्मजात, ईश्वरीय देन या विद्वत्ता एवं प्रतिभा से प्रसूत अंतः बाह्य व्यक्तिगत एवं सामाजिक उत्कष्टता ही संस्कति नहीं कह सकते है। आज संपूर्ण विश्व की संस्कृति में । एक अद्भुत संश्लिष्टता दृष्टिगोचर हो रही है। विज्ञान
और उद्योगीकरण के विकास ने विश्व को बहुत बड़ी । श्रमण कौन? सीमा तक बाँध रखा है। सभी देश एक दूसरे के गुणों,
श्रमण शब्द पर विचार करने के पूर्व सभ्यता और कार्यों और विचारों से किसी न किसी मात्रा में प्रभावित हो।
संस्कृति के असली अंतर को जान लेना अत्यंत आवश्यक
है। सभ्यता मानव जाति का बहिर्मुखी एवं बहुमुखी भौतिक . इस प्रकार इस प्रकट सत्य के बावजूद हम प्रत्येक विकास है जबकि संस्कृति अंतर्मुखी, आध्यात्मिक एवं गुणात्मक देश, जाति एवं संप्रदाय की संस्कृति के कुछ खास लक्षणों विकास है। सभ्यता और संस्कृति में साम्य नहीं विषमता को तो समझ ही सकते हैं।
और विरोध है। संस्कृति के शव पर सभ्यता का प्रासाद संस्कृति की बहुमान्य परिभाषाएँ ये हैं - आप्टे के
बनता है जबकि संस्कृति का गुलाब सभ्यता के बगीचे में
उगता है। संस्कृत शब्दकोष में संस्कृत धातु के अनेक अर्थ किये गए है - सजाना, संवारना, पवित्र करना, सुशिक्षित करना जैन धर्म के आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव थे। (1) To adorn, grace, decorate (2) To refine, polish (3) To consecrate by rebeating mantras (4) To purity (a
person) (5) To cultivate educate, train (2) The training and relirement of mind to ...... and manners, the condition of .......... than trained and
retired, the .........
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श्रमण संस्कृति का हृदय एवं मस्तिष्क |
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