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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि जीव कर्म से बंधा नहीं है, ऐसा दूसरा नय पक्ष है। ___ नय से देखने पर तीन प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं। नय ज्ञान सापेक्ष है, नय विकल्परूप है और नय अंश ग्राही है। नय कहते ही तीनों ही बातें सचमुच एक साथ आ जाती हैं। सापेक्ष होने से नय एक पक्ष या प्रतिपक्ष खड़ा करता है, जिससे विकल्प होता है और वह विकल्प तो अंश को ही ग्रहण करता है। विकल्प या अंश को जानने से और अधिक जानने की इच्छा होती है, आकुलता होती है - यही दोष है। इस प्रकार कर्म जीव की सापेक्ष दशा को बताने का कार्य वैज्ञानिक ढंग से करता है, लेकिन वास्तव में देखा जाय तो जीव का कर्म से या नय से कोई संबंध नहीं है। आत्मा तो निराकुल, अतीन्द्रिय, आनंदमय व विकल्प रहित है और कर्म या नय पक्ष व प्रतिपक्ष से रहित है। उपसंहार : भेद विज्ञान की वैज्ञानिकता इस प्रकार एक आत्मा ही कर्म का कर्ता है और अकर्ता भी है - ये दोनों भाव विवक्षा से सिद्ध होते हैं। जब तक जीव को स्व-पर का भेद विज्ञान नहीं होता, तब तक आत्मा कर्म का कर्ता है। भेद विज्ञान होने के पश्चात् आत्मा शुद्ध विज्ञानघन समस्त कर्तापने के भाव से रहित एक ज्ञाता ही मानना । कर्म से भिन्न स्वरूप शुद्ध चैतन्यमय स्वभाव रूप आत्मा का भान होते ही कर्म का जीव अकर्ता है, ज्ञाता ही है। अज्ञानमय दशा में कर्म का कर्ता है और भेद विज्ञान होते ही अकर्ता सिद्ध होता है। जैनों का यही स्याद्वाद है और वस्तु स्वभाव भी ऐसा ही है। यह कोई कल्पना नहीं है। परन्तु जैसा वस्तु स्वभाव है, वैसा भगवान् की वाणी में स्याद्वाद शैली में कहने में आया है। स्याद्वाद मानने से जीव को संसार-मोक्ष की सिद्धि होती है, यह सिद्धि ही वैज्ञानिकता है। एकान्त मानने से संसार व मोक्ष - दोनों का लोप हो जाता है। अज्ञान दशा में कर्म का कर्ता मानने से संसार सिद्ध होता है अर्थात् अनंत संसार में परिभ्रमण का कारण जीव की यह मान्यता है कि कर्म या राग भाव का कर्ता जीव है। ज्ञान भाव प्रगट होते ही कर्म का अकर्ता सिद्ध होता है, यही मोक्षमार्ग व मोक्ष है। कर्म का कर्ता मानने से नित्य संसार का प्रसंग बनता है, उसके प्रतिपक्ष मोक्ष का प्रसंग नहीं होता, अतः संसार-मोक्ष कुछ भी सिद्ध नहीं होता है और मोक्षमार्ग का लोप हो जाता है। इस प्रकार भेद विज्ञान द्वारा मोक्ष की सिद्धि ही कर्म सिद्धांत की वैज्ञानिकता है। O डॉ. जयन्तिलाल जी जैन का जन्म १ मार्च १६४६ का है। गलियाकोट (डूंगरपुर - राजस्थान) के इस सपूत ने १६८० में अर्थशास्त्र में पी.एच.डी. ओकलाहोम स्टेट यूनिवर्सिटी यू.एस.ए. से की। १६७६ में अर्थशास्त्र में एम.ए. बने - विचिता स्टेट यूनिवर्सिटी यू.एस.ए. से। १६७१ में एम.ए. (अर्थशास्त्र) की परीक्षा स्वर्ण पदक (प्राप्त कर उत्तीर्ण की, उदयपुर विश्वविद्यालय से। भारत-सरकार के विभिन्न प्रतिष्ठानों में महत्वपूर्ण पदों पर पूर्व में कार्यरत जैन वर्तमान में इंडियन बैंक चेन्नै के महाप्रबंधक है। जैन दर्शन में गहरी अभिरूचि ! आत्मतत्त्व के गवेषक, विश्लेषक एवं व्याख्याता ! अब तक जैन-दर्शन विषयक कई आलेख प्रकाशित ! -सम्पादक ६२ कर्म सिद्धांत की वैज्ञानिकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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