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________________ वंदन-अभिनंदन ! हैं। आप में आगम दर्शन का तत्त्व सम्बन्धी गम्भीर ज्ञान | को महत्त्व नहीं देती बल्कि यह मानव की आन्तरिक है। आप की स्मृति इतनी तीव्र है कि इतिहास के स्मृति साधना, त्याग व उच्च विचारों पर बल देती है। इसे सन्त पथ पर अक्षरशः अंकित है। जीवन के पवित्र भाव विरासत में मिले हैं। आप के जीवन-सुमन की सुरभि का विस्तार कर सब यह बहुत प्रसन्नता का विषय है कि श्रमण संस्कृति को प्रेरित करने वाला अभिनन्दन ग्रन्थ त्याग-शील-संयम- | के प्रतीक परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री सुमन मुनि जी म. अपने श्रुत की गौरवगाथा बने; यही हार्दिक भावना है। अभिनन्दन | जीवन का अधिकांश भाग तप-त्याग व साधना में लगाकर ग्रन्थ के सफल प्रकाशनार्थ हार्दिक शुभकामनाएँ। श्रमण संघ के गौरव को बढ़ा रहे हैं। - उपप्रवर्तिनी साध्वी कौशल्या 'श्रमणी' आपने श्रमणत्व की मौलिक विशेषताओं को अपने नालागढ़ (सोलन-हिमाचल) जीवन में उतार कर सन्तत्त्व का सजीव चित्रण उपस्थित किया। आप अपने जीवन के अनमोल क्षणों में सजग प्रहरी की भाँति साधु-मर्यादाओं का पालन करते हुए संघ दिव्य विभूति) के गौरव में चार चांद लगा रहे हैं। आपके जीवन के कण-कण में, अणु-अणु में साधना का स्रोत बहता है। आप परम श्रद्धेय सर्वतोमुखी व्यक्तित्व के धनी, जिस प्रकार धुन्ध में धवलता, पुष्प में सुगन्ध एवं चन्द्र में निर्भीक वक्ता, इतिहास केसरी, प्रवचन दिवाकर, श्रमणसंधीय शीतलता समाई हुई है, इसी प्रकार आपके जीवन में सलाहकार-मंत्री, शान्तिरक्षक एवं उपप्रवर्तक श्री सुमनमुनि साधना व्याप्त है। आपका हृदय नवनीत के समान-कोमल, जी म. के ५० वें दीक्षा-दिवस को दीक्षा-स्वर्ण-जयन्ति के गंगा-सम निर्मल, चन्दन-सम शीतल एवं सूर्य-सम तेजस्वी रूप में मनाने जा रहे हैं, प्रसन्नता हुई। हम ऐसी दिव्य है। आपकी वाणी में मधुरता है। विभूति के पावन चरणों में हार्दिक वन्दन-अभिनन्दन करते हैं। एवं उनके स्वस्थ, सुदीर्घ संयमी जीवन की मंगल ___महापुरुषों के जीवन को लाईनों में नहीं बांधा जा कामना करते हैं। सकता क्योंकि महापुरुषों का जीवन तो अथाह समुद्र की भाँति होता है। मुझे आपश्री जी के पावन दर्शनों का 0 मुनि सतीशकुमार सौभाग्य अनेकों बार मिला है। इतनी प्रसन्न मुद्रा, सौम्यता जैन स्थानक, नालागढ़ (हि. प्र.) शायद ही किसी में देखने को मिली। __ आज आपकी पावन दीक्षा-स्वर्ण-जयन्ति के मंगलमय जैन जगत के चमकते सितारे अवसर पर मैं आपके श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ एवं शासनेश प्रभु से यही कामना करती हूँ कि जैन संस्कृति श्रम प्रधान संस्कृति है। इसलिए इसे आप इसी प्रकार अपनी यश रूपी किरणें फैलाते रहें और हमें मार्ग दर्शन देते रहें। श्रमण संस्कृति कहा जाता है। श्रमण संस्कृति का मुख्य आधार साधना, त्याग, सेवा और समर्पण रहा है। श्रमण दीक्षा-जयन्ति के शुभ अवसर पर मैं आपको समस्त संस्कृति ऊँचे महलों भव्य-भवनों एवं सोने चाँदी के अम्बारों | साध्वी मण्डल की ओर से बहुत-बहुत बधाई देती हूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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