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________________ वंदन-अभिनंदन! सम्मेलन का ऐलान हुआ। पूज्य गुरुदेव पंजाब की धरती | गुरुदेव की दीक्षा-स्वर्ण-जयन्ति पर अभिनन्दन-ग्रंथ पर अपनी महक बिखेर रहे थे। गुरुदेव को भी आमंत्रित | का प्रकाशन हो रहा है यह जानकर अपार प्रसन्नता हुई। किया गया था, सम्मेलन में। गुरुदेव की शारीरिक शक्ति | मैं तो छोटी सी साध्वी हूँ अपने सम्पूर्ण साध्वी मंडल की क्षीण थी परन्तु दृढ़ संकल्प था कि मुझे जाना है। कई | ओर से गुरुदेव के पावन पदाम्बुजों में अपनी भाव भीनी बार मैंने देखा विहारों में गुरुदेव को इतना तेज बुखार आ | वन्दनांजलि अर्पित/समर्पित करती हूँ और यही मंगल जाता था कि एक कदम भी आगे बढ़ पाना असंभव | कामना करती हूँ आपश्री चिर आयु हों और जिन शासन प्रतीत होता था परन्तु गजब की शक्ति गुरुदेव में देखी है | की दिनों दिन प्रभावना बढ़ती रहे। मैंने कि वे फिर स्वयं उठकर चल पड़ते थे तथ सन्तों को मन मन्दिर के देव! गुरुवर! हम सवका उद्धार करो। भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे। आचारांग सूत्र में भी श्रद्धा-प्रेम और भक्ति के, दो चार सुमन स्वीकार करो। कहा है गुरु वर्णन मैं क्या करूँ, नहीं गुणों का पार। वीरेहिं एवं अभिभूय दिटं संजतेहिं सया अप्पमत्तेहि। | गागर में सागर भरूं कर लेना स्वीकार।। अर्थात् सतत अप्रमत्त / जागृत रहने वाले जितेन्द्रिय साध्वी ऋद्धिमा, पंजाब वीर साधक मन के समग्र द्वन्दों को अभिभूत करके सत्य (प्रशिष्याः उपप्रवर्तिनी श्री पवन कुमारी जी) का साक्षात्कार करते हैं। संयम जीवन में एक एक से बढ़कर भयंकर कठिनाइयाँ सामने आईं परन्तु गुरुदेव विचलित नहीं हुए। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी ___ गुरुदेव एक सफल प्रवचनकार है। जो कहना स्पष्ट कहना। कभी किसी का दबाव उन्हें पसन्द नहीं है। किसी जिज्ञासु ने साधक से पूछा – 'किं जीवनम्?' गुरुदेव को अनेक उपाधियों से अलंकृत भी किया गया क्या है ! उत्तर देते हुए उस महापुरुष ने कहा - परन्तु पद का अहंकार उनमें दृष्टिगोचर नहीं हुआ। ___ संयम खलु जीवनम् ___गुरुदेव का विचरण क्षेत्र अति विस्तृत रहा है - संयम ही जीवन है। आज के इस भौतिकवादी युग पंजाब, हरियाणा, राजस्थान हिमाचल, दिल्ली, उत्तर-प्रदेश, में जहां व्यक्ति आधुनिक चकाचौंध में जीवन की विकृत करने में लगा हुआ है वहीं कुछ साधक अपनी साधना मध्यप्रदेश महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि अनेक छोटे बड़े प्रान्तों में आपने धर्म-ध्वजा फहराई है। द्वारा ज्ञान का दिव्य आलोक प्रदान कर रहे हैं। गुरुदेव उत्तर भारत की श्रमण परम्परा की शान हैं। मैं तो परम श्रद्धेय सलाहकार मन्त्रीवर सुमनमुनि जी म. अल्पज्ञ और मतिहीन हूँ। गुरुदेव की गुण-गाथा को एक उच्चकोटि व्यक्तित्व के धनी हैं। आपका जीवन लिखने की शक्ति मुझमें नहीं है। गुरुदेव के एक सद्गुण विभिन्न गुणों से ओत प्रोत रहा है। की प्रशंसा में ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। जिस प्रकार से ___मैंने समीपता से देखा है; आप में सरलता है, जैसे व्योमस्थ तारागणों की गणना असम्भव है उसी प्रकार अन्दर है, वैसे ही बाहर है। आपकी वाणी, आपका श्रद्धेय गुरुदेव की सद्विशेषताओं की गणना भी अशक्य विचार और जीवन का प्रत्येक व्यवहार सरल है। कहीं पर भी छुपाव-दुराव नहीं है। १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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