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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि आप गुरु हैं। आपका संत जैसा जीवन, मुनि जैसी | माना गया है। मौन, साधु जैसी दिव्यता, भव्य स्थिरता साक्षात् गुरुत्व का मनुष्य के जीवन में गुरु की प्राप्ति होना महान उपलब्धि दर्शन कराती है। गुरु तेरा नाम भी तारणहारा है। तेरा है। गुरु एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है जिसकी कृपा से दर्शन भी है ओजस्वी ! तेरी वाणी कष्ट संहारक! जय-जय मनुष्य नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा बन जाता है। गुरुदेव ! किसी ने कहा है कि - गुरु चिन्तामणि रत्न के सदृश्य सभी की चिन्ताएँ हरण गुरु तेरी चर्चा हमारा प्राण है। करनेवाले कामकुंभ के समान होते हैं। गुरु तेरी चर्चा सुखों की खान है। __ ऐसे ही गुरुदेव हमारे भी हैं जिनका आज ४६ वां गुरु की चर्चा हमारी शान है। वर्ष दीक्षा का पूर्ण हुआ है और ५०वें वर्ष में प्रवेश कर हे मुनिवर! आप संयम से उजले, मन से उजले हो। | रहे हैं। आपकी वाणी में इतना माधुर्य एवं जीवन में हमारा वन्दन श्रद्धार्चन स्वीकार करो। जो भक्त जन | इतनी नम्रता तथा समता है कि हम सभी अभिभूत हो आए शरण बेड़ा पार करो। जाते हैं। डॉ. साध्वी सरोज (जम्मू) ___फूलों से लदी सुरभित वाटिका से कोई गुजरे और उसे देखकर मन आनंदित न हो यह कैसे हो सकता है? चाँद की सुन्दर चाँदनी खिली हो और मन प्रसन्नता से न दिव्य गुणों के धनी भरे, यह नहीं हो सकता? वसंतऋतु में और वह भी आम्रवन में कोयल को किसीने चुप देखा है? ऐसे ही सुमन 'अभिनन्दन' मुनि जी म.सा. के दीक्षा दिवस पर किस को खुशी न होगी? "विमल चन्दन सा सुरभित, श्री सुमन मुनि का जीवन है, "जल समुद्र और गुरु समुद्र में, कितना भेद अपार । श्रमण संघ के सलाहकार मंत्री, वह भंडार है क्षार का, यह मधु का है भण्डार।।" सद्गुण का खिलता उपवन है।।" हर पहाड़ पर हीरे पन्ने नहीं होते, और न ही हर वन आपश्री के दिव्य गुणों का चित्रण असंभव है। में चन्दन वृक्ष होते हैं। ऐसे ही हर जगह पर ऐसे गुरु नहीं तथापि श्रद्धावश कुछ लिखने का प्रयास उसी प्रकार कर मिलते। हम भाग्यशाली हैं जो ऐसे गुरु मिले हैं। जिनकी रही हूँ जिस प्रकार चन्द्रमा की छाया जल में देखकर वाणी में चुम्बक का अद्भुत आकर्षण है जिनका उज्ज्वल बालक उसे पकड़ने हेतु हठ करता है। जीवन हम सबका दर्पण है। शासन के ये रल हैं। __इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ उसी जीवन का स्मरण करते __ आप श्री के ५०वें दीक्षा-वर्ष पर अनंत-अनंत मंगल हैं जिसमें सूर्य-सा तेज हो, चन्दमा-सी शीतलता हो, हिमालय- | कामना। सी ऊँचाईयाँ हो, समुद्र सी गहराई हो, फलों-सा माधुर्य 0 साध्वी विमल कुमारी हो, फूलों-सी महक हो और यह सब कुछ स्व के लिए नहीं 'जैनसिद्धान्त शास्त्री' पर के लिए हो वही जीवन वन्दनीय, अर्चनीय एवं पूजनीय शिष्या : महासती श्री अजित कुमारी जी म. १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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