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जैन दर्शन का आलोक पंचम खण्ड
जयायेथितिवादीदिशिउन्नतःबदशिवित्र
विश्वल
तादिहिमादि.
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रगिरिमाणी सीव्हनिसाईनिसदवन्नी सावनगादीनांसंस्थानादिमाक्षा जहरिवननगाईला संवाणोक्षात व गुलीयनसालो मेरुसुधार तहादेव ३ शहनादिरगयदंताच उदाहनिधीससेयसहस्सा तथाली ससहस्सा मातीमलियासयान्नि
शतिरंगयदता सोजसलरका यसहसबछीसा सोलहियसबवेगंदी हततिक्षनरीविभीषनदीनीय बतादीनाक्षमालमासिसापमोल
जैन संस्कृति से अनुप्राणित,मूर्धन्य विद्वानों की लेखनी से संस्पर्शित- ये आलेख जैन दर्शन के इन्द्रधनुषी
विविध पक्षों को उजागर कर रहे हैं। सन्देश प्रदान कर रहे हैं- दया, क्षमा, शील, सन्तोष के।
रेखाएं हैं प्रतिबिम्बित- जीवन सूत्रों की। दिग्दर्शन अहिंसा, अनेकान्त का संस्तुति जिनवाणी की विविध पक्ष, विविध तथ्य,आलोचनात्मक, व्याख्यात्मक, तुलनात्मक ! और भी रहस्य होंगे- उजागर......गर करेंगे दृष्टिपात इन पृष्ठों पर !
-भद्रेश जैन
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