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________________ प्रवचन-पीयूष-कण अर्थ है कि हम अपनी भूल को स्वीकार करके उससे जब हमारी आत्मा में ज्ञान रूपी दीपक जलता है तो हमें उत्पन्न हुए दोष का प्रक्षालन कर दें। तत्त्व का ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञानाभाव में जो होता है ___ हम सामायिक करते हैं। सामायिक में दोष लग वह पाप होता है। कर्म बन्ध करने वाला होता है। गया। तो क्या सामायिक करनी ही छोड़ दें? ऐसा करना आहार, व्यवहार और विचार ये तीनों ज्ञान के बुद्धिमानी नहीं है। उपवास किया; उसमें दोष लग गया। अभाव में कुत्सित हो जाते हैं। हम जीवन की हर प्रक्रिया उपवास टूट गया। तो क्या उपवास ही करना छोड़ दें? को ज्ञान के प्रकाश में जानकर, देखकर बदल सकते हैं। यह कहां की अक्लमंदी है? अतः स्वाध्याय प्रकाश रूप है। ज्ञान रूप है। ___आप रास्ते पर चलते हैं। चलते हुए आपके वस्त्रों स्वाध्याय श्रुत-समाधि भी है। पर धूल जम गई, या कीचड़ लग गया। उससे क्या आप स्वाध्याय रूपी तप की साधना के लिए कार्योत्सर्ग वस्त्र पहनना ही छोड़ देंगे? नहीं, आप ऐसा नहीं करेंगे। की आराधना आवश्यक है। यदि आपका आसन स्थिर आप वस्त्र को प्रक्षालित करके उसे पुनः धारण करेंगे। नहीं होगा तो आप स्वाध्याय कैसे कर पाएंगे? आसन यही बात सामायिक को प्रक्षालित करके उसे पुनः धारण स्थिर नहीं होगा तो आपका मन भी स्थिर नहीं हो पाएगा। करेंगे। यही बात सामायिक, उपवास. नियम. पच्चक्खाण। आपकी वाणी भी अस्थिर बनी रहेगी। स्वाध्याय साधना के विषय में भी होनी चाहिए। इनमें यदि दोष लग जाए के लिए आपको अपने तीनों योगों को स्थिर करना तो प्रायश्चित से उसका शुद्धिकरण करना चाहिए। इससे होगा। एक चित्त से शब्द और अर्थ पर चिन्तन करना आपकी आत्मा शनैः शनैः निर्मल वन जाएगी। ... होगा। स्वाध्याय प्रकाश है आज स्वाध्याय में रस नहीं रहा है। इसमें स्वाध्याय स्वाध्याय का अर्थ है-स्वयं का अध्ययन अर्थात अपने का दोष नहीं है। हमारा दोष है। रस पैदा करने वाले हम आप को पढ़ना। स्वयं को देखना, जानना कि मैं कौन हैं। एकाग्रता और तन्मयता से स्वाध्याय कीजिए फिर हूँ। स्वाध्याय का अर्थ सत्साहित्य का पठन-पाठन भी स्वयं अनुभव कीजिए कि आप अन्धकार से मुक्त हो रहे होता है। स्वाध्याय से जीव को ज्ञान की प्राप्ति होती है। है....मृत्यु से मुक्त हो रहे हैं..... आनन्द का द्वार आपके समक्ष होगा। ... ___ छह प्रकार के आभ्यन्तर तपों में स्वाध्याय भी एक तप है। तप के लिए श्रम करना पड़ता है, तपना पड़ता क्षमापना है। जब हम तपेंगे तो हमारा ज्ञानावरणीय कर्म क्षय ___क्षमापना का अर्थ होता है - क्षमा देना और क्षमा होगा। अन्धकार मिट जाएगा। ज्ञान प्रकाश है। अज्ञान लेना। समापना जन्म-जन्मान्तर की विष बेल को काटने अन्धकार है। स्वाध्याय रूपी तप से अज्ञानान्धकार को । की एक अत्युत्तम विधि है। क्षमापना से कषाय शान्त हो मिटाना है। जाते हैं। जैन धर्म में क्षमापना को विराट अर्थ में लिया दीपक जलता है, प्रकाश होता है। प्रत्येक वस्तु गया है। क्षमा मांग लेना ही पूर्ण क्षमापना नहीं है। स्वयं प्रकाशित हो जाती है। प्रकाश में ही पता चलता है कि क्षमा करना और सामने वाले से क्षमा प्राप्त करना क्षमापना वस्तु क्या है, कैसी है, किस उपयोग की है। ठीक ऐसे ही का पूर्ण अर्थ है। | प्रवचन-पीयूष-कण ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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