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सुमन साहित्य : एक अवलोकन
जैन समाज दूसरे क्षेत्रों के जैनसमाज से अपेक्षा कृत
श्रेष्ठ है। 0 क्या जैन समाज में एकता संभव है?
जैन समाज में एकता संभव नहीं है। औपचारिकता अधिक है ठोस कार्यों का अभाव है। रचनात्मक कार्यक्रम भी हमारे पास नहीं है। हम औपचारिक अधिक हैं इसलिये एकता संभव नहीं है। वैसे भी जब तक हम दुराग्रहों से मुक्त नहीं होंगे, एकता संभव नहीं होगी। हाँ, यदि वर्तमान वैचारिक स्थिति
में यदि कोई बदलाव आता है तो एकता संभव है। 0 हम भीनमाल प्रकरण पर आपकी प्रतिक्रिया जानना
चाहेंगे?
० हाल ही में एक अंग्रेजी साप्ताहिक “दी वीक" ने जैन
धर्म गुरुओं पर बहुत ही घटिया किस्म के आरोप लगाये। यहाँ तक कि कुछेक धर्म-गुरुओं के चरित्र पर भी छींटा कसी की। आज पीत पत्रिकायें बढ़ रही है। ऐसी पत्रिकाओं से हम कानूनी लड़ाई तो नहीं लड़ सकते लेकिन सामूहिक तौर पर संगठित होकर ऐसी साजिशों का मुँह तोड़
जबाब दे सकते हैं। ० क्या जैनों को अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया जाना
चाहिए? आज जैन धर्म और समाज राजनयिकों की उपेक्षा का शिकार हो रहा है। हम भी भारतीय नागरिक हैं फिर अधिकार माँगने में ये संकोच क्यों? हम जन्म से जैन हैं और जैन भारत में अल्पसंख्यक हैं। ब्राह्मण संस्कृति और श्रमण संस्कृति दोनों एक दूसरे से भिन्न है। जैन धर्म और समाज को तभी सम्मान मिलेगा जब जैनों को विधिवत् अल्पसंख्यक घोषित
किया जाय। (श्री सुमनकुमार मुनि के दो टूक उत्तर से हम बहुत प्रभावित हुए। जब हम मुनिवर्य के दर्शन करते हैं तो किसी 'अल्हड़-फकीर' की याद ताजा हो जाती है। श्री सुमन मुनि जी जैसे महान सन्तों के दिग्दर्शन में जैन धर्म की विकास यात्रा अनवरत रूप से चल रही है।)...
शांति और अहिंसा प्रिय जैन समाज समय आने पर न्यायोचित मांग के लिये संघर्ष भी कर सकता है। शाँति और अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है। फिर हमारे धर्म स्थानों पर पुलिस को जाने से पूर्व मुखियाओं से अनुमति लेनी थी। क्या यह सच है कि मुनिवर्य ने आत्म हत्या की थी? हाँ, अपमान का गरल पीना कोई सहज नहीं है। आत्मग्लानि से कभी-कभी मानव आत्महत्या जैसा पाप कर लेता है।
परस्परोपग्रहो जीवानाम्।
| एक लघु साक्षात्कार
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