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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
गुरुदेव श्री का हस्तलिखित पत्रांश पंजाल-परम्परा/हमारी पाम्परा मुनि मुतनकमार भण- आचामी श्री हरिदासजीमहाराज रेतिहासिक इतिवृत्तयाजापप्रकाशित।
प्राचार्यश्री हरिदाप्तजी पंजाबप्रदेगीमस्मा पाम्परा/हमारी पाम्पस के साय 'रुष भितनगण-मणी परम्परा स्पानीमजोवर उततरुपी शेष ही पंजाब की दो पाम्पगएभन्म प्रदेश से भागत स्वामी रापरजायनीजीवनरामजी की।
पुराण पुरुषमी हरिदासजीम.कारतिवृत्त अतष्पनी पूर्णतया जन्म, भतिज्ञा भ्रमणदीक्षा प्रादिशपंजाबपट्टावली जो प्रचलित त उक्त बातांका गल्लेखहीं मिलता है, तथापि जिज्ञासा भन्नेषणमा प्रेरित करतीपानन्तःसादमों केमनाब मेंबालसभी प्रमापा से
समानेभहां नरतिवृत्त के ऊपप्रप्रकाश्म गोल्लेबाकिमामापान, --- नामकाणाप्राचार्मश्रीहरिदासजीकैनानको विभिन्नरूपांतेउल्लेख किया गया है-हरदासजी.हरिदासक्राषाविजीरिसके लिए निमन्पसाशी-- -
पंजाबपडावाति पनुऋविद्वारा लिखित परावलिमपिताजमिसम्प्रदाम की पट्टावली ऋषि सम्पदामकारातहाता
सालकनिष्कर्ष'पंजालमहापलि में हरिदासजी ताममिलता ,साम सामुसमुदामपरावाली शतिहासिककाम्पसंग्रवीनगरचंदजीनाहटा द्वारासम्पादितष्ठ-सातवें भाठवें पद
में हरिदाप्तासंहासेन्जभिहित करते हुए उनके शिष्मोतमा स्वर्गगमनका उल्लेखभिहसाव्य ---- ----रवितास्त प्रमाणांस हरिदात'नाम.ही प्रतीत होता हरदात संता
उच्चारणनचवा लिखने की स्वलनासे प्रचलित ऐसालगता ऋषिराम्रा .. विगेषण तो अनि सम्प्रदामका नाचक माजरत्रग्रसनभादमीनाममाण की परम्पराञ्चलरही। ......---"- शिष्य आचार्मवीहरिदासजीमहाराजकिन किमयेनके गुरुका नामम्मामा
स पर विचार करनामावश्यक प्रतीत होता.क्मोकिन्भमतरुपधावस्तीमानारपरी
मत स्पिरमहाभिन्मितारही किन्त्राप सोमालीभाषिकेतरायणायानसम्पाप तिहाप्त, ...."हमारा इतिहास' आदि के भाभारपरमा प्रचालित राकिन्तु भन्नेषण से और - पण पट्टावालाम्पविरावलीमग्रन्दोहो केसमा प्रापारकाजासकता.किले
भीलवजीभाषिजी शिस नकि सोनजीऋषिरेग्नकेगुरुभ्रातामह पहाबली/स्थविरा
वलीलेवक के पासलारपपरहस्तलिखित प्रतितपस्वी सहज भनि के पाप्त विद्यमान में है। ------मैंने रबिन्द्रनमालेरकारला पंजाब में नम्रदेली थी।
---मित्व के बारे में उक्त प्रमाणकेमाप्त होजाने पर दोमा उत्पन्न हो गए-पृशन प्रचालित परम्परा/मराननि तमामाधारित प्रकाशित ग्रन्प, दुसरा पंजाब पररावली स्पलिरावलीतका साधुसमराम पटावलीकेप्राधार पर। --------- प्रमाण: "मनसाधलबजी प्रारति मोज गुरूभामा
"जगताप जय मगर,ता सिघनाम सणाम IT --रिमा-मां-तंजमसरसघन उत्तम मणगार:
लबजीके मिमजाणिए हरिदास पारपारा----- तवजी मिष सोमली, कानजी ताराचन्द।---- -"जोगराज बालोजीहरिदात मंद .
उपर्युक्त प्रमाणे के भाधारपर रस निष्कर्ष पर पहुंचते कि दूसरे मत का उल्लेखही श्राधिक मात्रामकि इसमें राकरिष्म सामन्य'का स्पष्ट उल्लेख मारे साप +प्रतापगटभण्डारपत्रावलि प्रकाशितदाहिनन्जैनपाघडीबोर्ड- - लेखक पं.मोतीकषिजीम. हरिदातामणगार-स्पविराबलीपर, हरिदासभामंद:-साधु-पाग. सविरावली रचा, साधुधामपदराबलि,पदस.-----
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