________________
साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
अनेक पद विभूषित महाराजश्री जी मुनिश्री सुमनकुमार जी 'श्रमण' : शब्द चित्र निर्भीक वक्ता – सन् १६६३ में श्री एस.एस. जैन जन्म : सन् १६३६ संवत् १६६२ माघसुदि वसंत सभा रायकोट द्वारा दिया गया पद।
पंचमी ____ इतिहास केसरी - आचार्य अमरसिंह जैन श्रमणसंघ जन्मस्थान : बीकानेर - ‘पाँचु' गांव (राज.) के संत प्रमुख श्री रतनमुनिजी महाराज द्वारा सन् १६८३ पिता : श्री भीवराजजी चौधरी में उपाध्याय श्री मनोहरमुनिजी के उपाध्याय पद समारोह
माता : श्रीमती वीरांदे जी के शुभावसर पर यह पद प्रदान किया गया।
दीक्षा : ई. १६५० संवत् २००७ आसोज सुदि १३ प्रवचन दिवाकर – इस पद पर आपको श्री एस.एस. जैन सभा फरीदकोट ने सन् १९८५ में सुशोभित किया।
दीक्षानगर : साढ़ौरा (तत्कालीन पंजाब) हरियाणा श्रमणसंघीय सलाहकार - पंजाब से पूना सम्मेलन हेतु गुरुदेव : श्री मुनि महेन्द्रकुमार जी महाराज प्रस्थान के पश्चात् (लगभग पूना के सन्निकट आडगांव में गुरुमहदेव : प्रवर्तक पं. श्री शुक्लचन्द्रजी महाराज आदिनाथ सोसायटी पूना के शिष्टमंडल द्वारा आचार्य प्रवर
शिक्षा : संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, के आदेशानुसार इस उच्च पद पर सन् १९८७ में आपको
अंग्रेजी, आगम, आगमेतर-साहित्य अध्ययन । प्रतिष्ठित किया गया।
अलंकरण : इतिहास केसरी, प्रवचन दिवाकर, निर्भीक शान्तिरक्षक – 'पूना-श्रमण-संघ-सम्मेलन' का सुचारु
वक्ता, श्रमणसंघीय सलाहकार, मंत्री,
उपप्रवर्तक। रूप से संचालन एवं आपकी महती योग्यता के फलस्वरूप १६८७ में दिया गया पद। जिसे 'स्पीकर' भी कहा जाता विशेषगुण : मिलनसारिता, सरलता, निर्भीकता तथा
सिद्धान्तवादिता, स्पष्टवादिता, समन्वयवादी
विचारों के धनी, लेखन, सम्पादन, अनुवादन, मंत्री पद - आचार्य श्री के आदेशानुसार उपाध्याय
तथा प्रवचन। श्री पुष्करमुनिजी महाराज तथा उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी महाराज की सन्निधि में ई. सन् १६८८ में इस पद की घोषणा औरंगाबाद (महा.) में की गई।
उपप्रवर्तक पद – अक्षय तृतीया १६६८ बेंगलोर में, उत्तरभारत प्रवर्तक भंडारी श्री पद्मचन्दजी म. द्वारा।
है।
| ११४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org