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________________ वंदन - अमिनंदन! नारी जीवन के उत्थान में आपकी वाणी युगवाणी | मेरे गुरुदेव इतिहास मार्तण्ड, श्रमणसंघीय सलाहकार का रूप लेकर मुखर हुई हैं। आपके नवनीत सम मानस में | श्री सुमनमुनि जी महाराज भी राजस्थान की धरती पर नारी-पीड़ा की अनुभूति चरम सीमा पर है। यह कह दूं तो जन्म लेने वाले एक वीर हैं....महा वीर हैं। आप आत्मसाधना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी - के महासंग्राम-पथ पर पिछले पचास वर्षों से अविश्रान्त, अक्लान्त बढ़ रहे हैं। आपकी शौर्य साधना को मेरे लक्ष___ गुरुदेव आपकी वाणी से लक्ष प्रणाम! ___ अवला को संबल मिला है। पूजा के मन्दिर की थाली बन ___ गुरुदेव का मुझ पर महान् उपकार है। मुझे याद आ एक चमत्कृत रूप खिला है। रहा है वह दिन....अप्रैल १६७४ का समय जब मेरी दीक्षा तिथि निश्चित हो चुकी थी पर मेरे माता-पिता दीक्षा की इसका ज्वलन्त प्रमाण आपकी साहसिक और श्रमसाध्य अनुमति न देने के लिए कटिबद्ध हो गए थे। चमत्कार खोज “पंजाब श्रमणी इतिहास" है । कहूं, वचन सिद्धि कहूँ या फिर संयम का अचूक प्रभाव गुरुदेव! आपकी दीक्षा स्वर्ण जयन्ती पर कोटिशः कहूं। गुरुदेव ने कैसे और किस ढंग से मेरे बड़े भाई को वन्दन एवं शुभकामनाएं! आप चिरायु हों। शतायु हों। समझाया कि सब शान्त हो गए और मुझे सहर्ष दीक्षा की जिनशासन को दिपाते रहें। विभ्रमितों का पथ-दर्शन करते अनुमति मिल गई। नियत दिन ही दीक्षा हुई। गुरुदेव ने रहें.....इन्हीं शुभाशाओं के साथ पुनः वन्दन । ही अपने मुखारविन्द से मुझे दीक्षा पाठ पढ़ाया। । साध्वी मोहनमाला (तपाचार्या) गुरुदेव के इस परम उपकार को मैं जन्म-जन्मान्तरों में भी विस्मृत नहीं कर पाऊंगी। मेरी आस्था के देवता के पचासवें दीक्षावर्ष पर मेरे मेरी आस्था के देवता अनन्त-अनन्त अभिनन्दन! वन्दन! डॉ. साध्वी पुनीतज्योति राजस्थान की धरती ने असंख्य शूरमाओं को जन्म (दिल्ली) दिया है। शूरमा वह ही नहीं होता जो सिर पर कफन वान्ध कर प्राणों की ममता त्यागकर युद्ध भूमि में दुश्मन के | विराट व्यक्तित्व के धनी दांत खट्टे करता है, शूरमा वह भी होता है जो संयमसंग्राम में आत्मशत्रुओं को रौंद देता है। भारतीय संस्कृति व्यक्ति की मौलिकता व्यक्तित्व में निहित होती है। में दूसरे प्रकार के शूरमाओं को प्रथम प्रकार के शूरमाओं व्यक्ति की बाह्य संरचना में व्यक्तित्व का संपूर्ण परिचय पर वरीयता दी है। आगम कहते है कभी नहीं मिला करता, वह एक पक्ष हो सकता है किन्तु ____ “दस लाख सुभटों को जीतने वाले वीर से भी बड़ा । व्यक्तित्व का वास्तविक निखार व्यक्ति की आन्तरिकता वीर वह होता है जो अपने को जीत लेता है। अपने मन | में ही पाया जाता है।" को जीत लेता है।" हमारे श्रमणसंघ के मंत्री प्रवर श्री सुमनकुमार मुनि दिल्ली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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