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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि श्री राजमति जी की शिष्या आज्ञावती जी हैं। श्री सुन्दरी देवी जी म. की छह शिष्याएं हैं - ( १ ) श्री शान्तिजी ( २ ) श्री भागवन्ती जी ( ३ ) श्री सुशील जी (४) श्री सुषमाजी ( ५ ) श्री सुधाजी (६) श्री संगीता जी । आपके प्रशिष्या परिवार की साध्वियों की संख्या २५ से अधिक है। महार्या श्री शेरांजी महाराज आप महार्या श्री सजना जी महाराज की शिष्या और श्रीज्ञानां जी महाराज की गुरुवहन थीं । आपका जन्म अमृतसर नगर में हुआ। लाला खुशहाल सिंह जौहरी आपके पिता थे । आप संसार पक्ष में आचार्य श्री अमरसिंह जी महाराज की बूआ थीं। आपकी दीक्षा वि.सं. १८७५ में स्यालकोट नगर में इक्यावन वर्ष की दीर्घायु में आर्या सजना जी के चरणों में हुई । आप आगमज्ञ साध्वी थीं, विदुषी एवं प्रवचनकार भी थीं । त्याग, संयम आदि में आपने कभी शैथिल्य को प्रश्रय नहीं दिया। आप अपने नाम के अनुरूप ही शेरनी की भांति ही साहसी व पराक्रमी थीं । आपने अपने वर्चस्व एवं व्यक्तित्व से पंजाब प्रदेश की परम्परा को दो साधुरत्न एवं संघ शिरोमणि आचार्य प्रदान किए। पढ़िए दो संस्मरण - ६४ रामलाल जी म. के चरणों में वि.सं. १८६८ वर्ष में दीक्षित हो गए। Jain Education International (२) एक बार आप पसरूर ( स्यालकोट ) नगर में पधारीं । आपकी धर्मकथा में श्री सोहनलाल भी आया करते। तब उनकी उम्र सात वर्ष थी । एक दिन अनायास ही आप की दृष्टि श्री सोहनलाल जी के पांव पर पड़ी । आपने भविष्यवाणी की कि यह बालक एक महान् संत और धर्म प्रभावक होगा। आखिर आपकी यह भविष्य वाणी सत्य सिद्ध हुई । आपकी दो शिष्याएं हुई (१) श्री पूर्ण देवीजी (२) श्री गंगी जी । आगे चलकर इस परम्परा में कई तेजस्विनी और संयमी साध्वियां हुई। उपसंहार — (१) आचार्य श्री अमरसिंह जी महाराज जब गृहस्थ में थे, तो उनके पुत्रों का देहान्त हो गया था, फलतः वे बड़े उदास, शोक मग्न रहने लगे । विशेषतः अन्तिम पुत्र के लिए जो लगभग नौ वर्ष का होकर विलग हो गया। उस समय श्रीशेरांजी महार्या ने उन्हे संसार तथा पुद्गल वैचित्र्य का ज्ञान करवाते हुए आर्त्त-ध्यान एवं मोह को कर्मबन्ध तथा आत्म-पतन का कारण बताते हुए संयमत्याग मार्ग अपनाने की प्रेरणा दी थी। फलतः वे पं. श्री विशेष जानकारी के लिए देखिए श्री सुमन मुनि जी म. द्वारा लिखित पुस्तक “पंजाब श्रमणसंघ गौरव... " का पृष्ठ १६३ - प्रस्तुत श्रमणी परम्परा में समयाभाव व स्थानाभाव के कारण हम पंजाब श्रमणी परम्परा का उपलब्ध सांगोपांग इतिहास प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं। जो परम्पराएं हमने प्रस्तुत की हैं वे भी अल्प परिचय और अत्यन्त संक्षेप में उद्घृत हुई हैं। हम समझते हैं कि “पंजाब श्रमणी परम्परा" का सांगोपांग इतिहास एक स्वतंत्र ग्रन्थ की अपेक्षा रखता है । इतिहास केसरी श्री सुमनमुनि जी महाराज दिशा में एक स्तुत्य कार्य किया है। उनकी लिखी हुई पुस्तक “पंजाब श्रमण संघ गौरव आचार्य श्री अमरसिंह जी म." में साध्वी परम्परा के इतिहास का संक्षेप में उल्लेख हुआ है । विद्वान् व इतिहासज्ञ मुनियों व साध्वियों को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए । इस उक्त अध्याय का आधार ग्रन्थ "पंजाब श्रमण संघ गौरव..." है । 'पंजाब श्रमणी परम्परा' के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु उक्त ग्रन्थ का अवलोक करें । For Private & Personal Use Only पंजाब श्रमणी परंपरा www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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