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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
सुमन कहो, फूल कहो, पुष्प कहो, पदम कहो, कमल कहो अथवा पंकज कहो। अरविंद कहो, सरसिज कहो, सरोज-प्रसन बेशक अम्बुज कहो। मन चाहे तो कह दो अब्ज बंधुओं! एक ही बात है। मुनि सुमन स्वर्ण दीक्षा जयंति कर रही सब को मात है।
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मुनि स्वर्ण दीक्षा जयंति के शुभ समाचार मिले, कि संघ की शोभा को चार चान्द लगा रहे हो। आप श्री मन आनन्द सागर में डुबकियां लगाने लगा। रोम रोम जन-जन के हृदयों के सिंगार हो ! सरसिज नयनाभिराम प्रफुल्लित हो गया। दिल की कलियां खिल उठी। हृदय- हो ! कोष खुशी से भर गया। बधाई-बधाई के स्वरों से हृदय - हे स्पष्टवादी महर्षे ! आप का आत्म-पट स्पष्ट है। तन्त्री झनझना उठी। अन्ततः मन में यकायक ये ही भाव स्पष्टवादिता आपका प्रथम गुण है। प्रभो ! आप का हृदय आये, हमारे से कोसों दूर हैं। न समक्ष वर्धापनोपहार भेंट शीशेवत् निर्मल और साफ है। भगवान महावीर का कर सकते हैं न प्रत्यक्ष दर्शन ही पा सकते हैं और न ही उद्घोष - धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ - धर्म शुद्ध हृदय में ही यह मंगलमयी दिव्योत्सव अपने चर्मचक्षुओं से निहार सकते ठहरता है - के अनुसार वास्तव में ही आपका हृदय धर्म हैं। यह पुण्य-अवसर पुण्यवानों को ही उपलब्ध हो सकते , रंग से रंजित है। आप का हृदय धर्मालय है। धर्मकक्ष
है। धर्म स्थान और जिन मन्दिर है। हे मुनि पुंगव ! आप का धर्मोद्योत से उद्योतित
हे विद्यावागीश ! आप इस विश्व में इतिहास निर्मल चेहरा, भव्या-तीखी नाक, इकेहरी काया, मधुर
केसरी के नाम से भी प्रख्यात हैं भगवान महावीर से लेकर मंजुल गिरा, तीव्रगति, उपपातिया बुद्धि, सैनिकों जैसा
आज तक की परम्परा के प्रति आप सर्व ज्ञाता हैं। कोई
वार्ता आप से छुपी नहीं। आप जैन साहित्य दिग्दर्शन के उत्साह सदैव नयनों के समक्ष चित्रवत् घूमता रहता है।
द्रष्टा हैं। निर्मल चारित्राधिकारी हो। इन निर्मल-स्वच्छआप की मधुर रसीली आवाज कर्ण विवरों में गूंजती है।
श्वेत वस्त्रों में आप बेदाग-उज्ज्वल व्यक्तित्त्व के धनी हो। - हे सद्गुरो महर्षे ! सुमनवन खिले रहना आप श्री आप श्री आचार्य प्रवर पूज्य श्री काशीराम जी म.सा. के का काम है। पुष्पवत् समस्त वातावरण को अपनी गुण प्रपौत्र और पंजाब प्रवर्तक श्रद्धेय पंडित श्री शुक्लचन्द्र सुरभि से सुरभित कर देना आप का स्वभाव है। आप श्री जी म.सा. के पौत्र तथा श्रद्धेय प्रातः स्मरणीय-सरलात्मापदमवत् निर्लेप हैं। सरसिज कमलवत् आप श्री अलग भद्रात्मा-हंसमुख चेहरा श्री महेन्द्रमुनि जी म.सा. के सुशिष्यरल अलग और अनासक्त तथा निष्परिग्रही हैं। कष्टों और हो आप ! आप प्रवचनकार तथा सलाहकार-परामर्शदाता उपसर्गों के आने पर भी पंकजवत् झूमते रहना आपका हो। धर्म है। आप श्री संघ सरोवर के सरोज और प्रसून हैं जो हे गुणगणालंकृत गुरुदेव ! आप गुणों के धाम
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