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६. पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड थे। बहुत सुन्दर कुशाग्र बुद्धि थे। श्रीबाबूलाल जी राजवैद्य ने योग्य पात्र मानकर बिल्कुल गरीब देखने पर भी अपनी कन्या सुन्दरबाई का विवाह उनके साथ कर दिया और सब प्रकार का दहेज व सहायता उनकी की । वे उज्जैन में दवाखाना खोले थे पर उनका कुछ समय बाद देहावसान हो गया।
आयुर्वेद शिक्षा के लिये अलग से खर्च की व्यवस्था संस्था नहीं कर सकती थी। फलतः श्रीखेमचंदजी अवैतनिक शिक्षा देते रहे। पश्चात् स० सि० कन्हैयालाल गिरधारीलालजी की ओर से दवाखाना खोला गया। उसमें प्रारंभ से क्षेमचंदजी और बाद में केशरीमलजी आयुर्वेदाचार्य काम करते थे । श्रीकेशरीमलजी ने ४० साल तक संस्था के छात्रों को आयुर्वेद की शिक्षा अवैतनिक दी।
दूसरे छात्र पं० बाबूलाल जी कलकत्ता की ट्रेनिंग लेकर जब आये थे, तो शहडोल में सेठ नथमल द्वारा स्थापित दवाखाना में सविस करते थे। पर आज ४० साल से स्वतंत्र दवाखाना वहाँ चला आ रहे हैं। उन्होंने अच्छी कीर्ति और धन अर्जित किया। समाज के बालकों की धर्म शिक्षा का अवैतनिक कार्य करते हैं । अब वृद्ध हो गये हैं तथा गतमास ही दिवंगत हो गए।
सन् १९२५ में मैं दूसरे जिला काँग्रेस का प्रतिनिधि बनकर कानपुर कांग्रेस में शामिल हुआ। सन् १९३० में मैंने जंगल सत्याग्रह के जेल-यात्रियों के परिवारों की सहायता की । मैंने कुछ समय तक कांग्रेस की ओर से बुलेटिन भी निकाला।
सन् १९२७ में परम पूज्य आचार्य श्री १०८ शांति सागर जी का ससंघ चातुर्मास कटनी में हुआ। उसके पूर्व ही सि० हीरालाल कन्हैया लाल जी मिर्जापुर द्वारा कटनी में एक छात्रावास का निर्माण ४०-५० हजार रुपया लगाकर कराया और ४०००/-ननद देकर उसका ट्रस्ट डीड लिख दिया । संस्था को लीज पर जमीन सरकार से भी प्राप्त की जा चुकी थी जिसे प्राप्त करने में मुझे स० सि० दादा जी, सेठ पीरमल जी, स्व० ५० बाबूलाल जी, जो मेरे प्रारंभिक विद्या गुरु थे, मास्टर भैयालाल जी आदि ने पूर्ण सहयोग दिया और फारेस्टर सहित, जो यहाँ नगरपालिका अध्यक्ष थे, उनसे पूर्ण सहकार लेकर सहायता पाई थी। कटनी संस्कृत विद्यालय में शास्त्री कक्षा तक पढ़ाई चलती थी, काशी में आचार्य परीक्षा तक । छात्र संख्या उच्च कक्षाओं में कम रहती थी पर अध्यापक तो उसके लिये रखना पड़ता था। पं० कैलाश चंद जी एकबार कटनी आये। परस्पर परामर्श हुआ कि इससे समाज का धन ज्यादा खर्च होता है। अतः हम यहाँ मध्यमा तक ही चलावें। शास्त्री परीक्षा हेतु छात्रों को काशी भेज दें, तो अध्याप खर्च कम हो जायेगा और काशी में छात्रों के साथ में ये छात्र भी पढ़ लेंगे। काशी में प्रथमा कक्षा तोड़ दी जाये। प्रारंभिक प्रथमा के छात्र सब कटनी ही पढ़ें । इस समझौते के अनुसार ४० साल दोनों विद्यालय चले।
कटनी में प्रारंभ के वर्षों में कुछ छात्र शास्त्री या न्यायतीर्थ परीक्षा पास कर निकले। पं. नाथराम जी डोगरीय, पंडित गुलाब चंद जी, पंडित बाबूलाल जी, पंडित रामरतन जी, पंडित नाथूलाल जी आदि न्यायतीर्थ, सिद्धांतशास्त्री, कोई काव्यतीर्थ और कोई व्याकरणतीर्थ भी हुए। आयुर्वेदाचार्य तो पचासों जैन-जनेतर छात्र बने, जो यत्र-तत्र अपनी स्वतंत्र आजीविका कर समाज की सेवा कर रहे हैं । इनमें प्रमुख हैं नाथूराम जी डोगरीय पं० क्षेमचन्द्र जी, प्रेमचन्द्र जी, पं० बाबूलाल जी, पं० बाबूलाल जी छपारा, पं० हुकमचंद जी, पं० मोतीलाल जी आदि।
मैं संस्था संचालन कार्य हेतु पर्दूषण पर्व, अष्टाह्निक पर्व, महावीर जयंती आदि पर्वो तथा वेदी प्रतिष्ठा, गजरथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं पर जाकर समाज से संस्था को आर्थिक सहायता प्राप्त कराता था। इसी सहायता के बल पर संस्था के आर्थिक संचालन का भार था ।
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