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विन्ध्य क्षेत्र के जैन विद्वान् - १. टीकमगढ़ और छतरपुर ५१
वन्दना की रचना कर जैन साहित्य में श्रेष्ठ साहित्य की सर्जना की है । विवाह के समय प्राय: अभद्र गारियों का प्रचलन होने की पद्धति बहुत अखरी और उन्होंने इसको मिटाने के लिए सुन्दर धार्मिक, शिक्षाप्रद गारियों की रचना कर उनके स्थान पर प्रचलित कराया। आपके द्वारा रचित जैन गारियां आज भी महत्वपूर्ण पर्वो पर गायी जाती हैं । बारह भावना तो पं० जी की एक अनोखी रचना है। उन्होंने इसके माध्यम से संसार की असारता का सुन्दर चित्रण किया है । व्यक्ति अपने कर्मों के द्वारा ही फल प्राप्त करता है । जो जैसा करेगा, वह वैसा ही भरेगा । पंडित जी ने इस तथ्य को एक नई भावना के द्वारा व्यक्त किया है । वास्तव में इन भावनाओं के माध्यम से जैन सिद्धान्त का ज्ञान प्राप्त होता । रचना सरल, सुबोध और हृदयस्पर्शी है और भावनाविभोर करने वाली है । आप सम्पादन और लेखन कला में भी पीछे नहीं हैं । आपने रामविलास तथा नाममाला का कुशलता के साथ सम्पादन किया है। चिदानन्द स्मृति ग्रन्थ, जो वास्तव में शोधार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रन्थ है, के आप प्रधान सम्पादक रहे। अध्यापन काल में आप मार्तण्ड हस्त लिखित मासिक पत्रिका का सम्पादन करते थे और छात्रों को पत्रकारिता, सम्पादन का कार्य सिखलाते रहे हैं । सम्यग्दर्शन पर पूज्य वर्णी जी के प्रवचनों का भी आपने सम्पादन किया है ।
वर्तमान में आप त्याग के मार्ग का अनुसरण करते हुये संन्यासियों को धार्मिक शिक्षा एवं प्रवचन का लाभ देते हुये आत्म-कल्याण में लगे हुये हैं । आपने अब द्रोणगिर के ब्रती आश्रम को अपना कार्यक्षेत्र बनाया है । पं० मकुन्दी लाल जी फोजदार
द्रोणगिरि में फोजदार वंश एक ऐसा वंश है जिसमें गत चार पीढ़ियों में विद्वान् हुये हैं । पं० मुकुन्दी लाल जी फौजदार एक कुशल प्रतिष्ठाचार्य के साथ ही कवि भी रहे हैं । इन्होंने सुन्दर धार्मिक भजनों की रचना की है। उनका एक भजन " कभी भी अवसर मिलेगा हमको, स्वरूप निज में समायगें हम " मार्मिक भजन हैं। हमें खेद है कि परिवार वालों ने उनके द्वारा रचित भजनों को भी सुरक्षित नहीं रख पाया और निश्चित ही साहित्य जगत् में एक अच्छे धार्मिक गीत साहित्य की कमी हो गई । मकुन्दी लाल जी के सुपुत्र राम वगस जी भी उसी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले विद्वान् हुए हैं। प्रतिष्ठाचार्य के अलावा आप कुशल चिकित्सक भी थे । आप में स्वभाविक काव्य प्रतिभा थी । आपके द्वारा रचित भजनों का संग्रह राम विलास के रूप प्रकाशित है। राम विलास एक गायन मंजरी हैं । उसमें संग्रहीत भजन बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ।
पं०
पं० कमलापति जी फोजदार
पं० राम बगस जी के सुपुत्र पं० कमलापत जी भी प्रतिष्ठाकार्यों में दक्ष थे ।
पं० मोती लाल जी फोजदार
पं० कमलापत जी की परम्परा को उनके सुपुत्र पं० मोती लाल जी ने आगे बढ़ाया। जहाँ तक मुझे स्मरण है इस परम्परा में पं० मोती लाल जी ही योग्यतम और अन्तिम विद्वान् थे । आपने महत्वपूर्ण विशाल प्रतिष्ठाओं, गजरथों को शुद्ध दिगम्बर आम्नाय से सम्पन्न कराया । प्रतिष्ठाकार्यों में सिद्धहस्त होने के साथ सम्पादन कला में भी कुशल थे । आपके द्वारा सम्पादित दीप मालिका पूजन, वर्तमान चतुर्विंशति जिन पूजा विधान द्रोण प्रांतीय नवयुवक संघ, द्रोणगिरि द्वारा प्रकाशित रचनायें हैं ।
पं० कमल कुमार शास्त्री एम. ए.
द्रोणगिरि की विद्वत् परम्परा में श्री पं० गोरे लाल जी शास्त्री के सुपुत्र श्री कमल कुमार का नाम उल्लेखनीय है । इसके द्वारा सामाजिक सेवा के साथ ही साहित्य सृजन का कार्य भी हो रहा है। वर्तमान में जिन मूर्ति प्रशस्ति लेख, जैन तत्वदर्शन, द्रोणगिरि, क्षु० चिदानन्द महाराज आदि रचनायें प्रकाशित हैं । क्षु० चिदानन्द
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