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विन्ध्य क्षेत्र के जैन विद्वान-१. टीकमगढ़ और छतपुर ४९
रचनाओं पर लेख समाज के सामने लाने का श्रेय लिया। आपने प्राचीन विद्वानों में देवीदास जी दिगौड़ा और उनके द्वारा रचित अनेकों रचनायें, जो यत्र-तत्र शास्त्र भण्डारों में हस्तलिखित रूप में पड़ी थी, खोज कर और उनके प्रकाशन की व्यवस्था कर दुर्लभ महत्वपूर्ण जैन भजन, पूजायें समाज को सुलभ की हैं। द्रोण प्रान्तीय नवयुवक सेवा संघ, द्रोण-गिरि द्वारा वर्तमान चौवीसी जिन पूजन का प्रकाशन आपकी ही प्रेरणा से हुआ है। आपने लगभग ३०० शोधपूर्ण निबन्ध लिखे हैं जो अनेकान्त, जैन सन्देश शोधांकों, जैन सिद्धान्त भास्कर आदि महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित हये हैं। उनके निबन्धों का ही एक पृथक से संकलन कर प्रकाशन किया जाय, तो निःसन्देह जैन साहित्य पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिये अनोखा संदर्भ-ग्रंथ बन सकेगा। आपका साहित्य के क्षेत्र में इतना विशाल कार्य है कि यदि कोई विश्वविद्यालय इनके शोधपूर्ण निबन्धों और साहित्यिक कार्यों का आकलन करे, तो डी. लिट की सम्मानित उपाधि प्राप्त हो सकती है। इतिहास, पुरातत्व की मासिक पत्रिका अनेकान्त के आप बहुत समय तक सम्पादक रहे हैं।
पंडित जी ने अपने जीवन में जैन साहित्य का खूब चिन्तन, मनन और लेखन किया है। जैन सिद्धान्त के महत्वपूर्ण आगमग्रन्थ मोक्षमार्ग प्रकाशक, अनुभव प्रकाश, जैन ग्रन्थ प्राभृत संग्रह, द्वितीय भाग, जैन तीर्थयात्रा संग्रह, जिनवाणी संग्रह, पुरातन जैन वाङ्मय सूची आदि का सम्पादन, एकी भाव स्तोत्र, समाधितंत्र, इष्टोपदेश का अनुवाद एवं जैनग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह प्रथम भाग का सहसम्पादन आपने बड़ी कुशलता से किया है। आपने नेमीनाथ पुराण, अर्थ प्रकाशिका की महत्वपूर्ण भूमिका लिखकर इन ग्रन्थों का महत्व बढ़ा दिया है ।
निःसन्देह आप जैन साहित्य के क्षेत्र में ऐसे अनोखे विद्वान् हुए हैं जिसके लिए 'न भूतो न भविष्यति' की उक्ति अक्षरशः चरितार्थ होती हैं । पुरातत्वविद् बालवन्द्र जी एम० ए० (१९२४- )
श्री बालचन्द्र जी का मध्यप्रदेश के पुरातत्वविदों में महत्वपूर्ण स्थान है। आपका जन्म सिद्ध-क्षेत्र द्रोणगिरि के पाश्र्व भाग में स्थित ग्राम गोरखपुर में हुआ। आपने काशी से प्राचीन भारतीय इतिहास-संस्कृति एवं पुरातत्व में एम० ए० की शिक्षा प्राप्त कर प्रिन्स आफ वेल्स म्यूजियम बम्बई में संग्रहालय विज्ञान का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद आप मध्य प्रदेश शासन के पुरातत्व विभाग में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे ।
आपकी लिखने में रुचि थी। इससे पौराणिक आख्यानों को आप लिखते रहे। आत्म समर्पण और जल खण्डकाव्य आपकी प्रकाशित रचनायें हैं। इसके बाद १९४७ से आपकी रुचि पुरातत्व एवं मुद्राशास्त्र की ओर गई और तब से पुरातत्व सम्बन्धी महत्वपूर्ण लेखों को लिख कर पुरातत्व की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित कराते रहे । पुरातत्व की पत्रिका एपिग्राफिया इण्डिका, जरनल आफ इन्डियन म्यूजियम, जरनल आफ न्यूमिस्मेटिक मोसाइटी आफ इन्डिया, जरनल आफ इन्डियन हिस्ट्री, उड़ीसा-हिस्टारिक जरनल आदि में आपके लेख प्रकाशित होते रहे हैं। आपका जैन प्रतिमा विज्ञान मूर्तिकला का ज्ञान कराने वाला महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसके अलावा छत्तीसगढ़ का इतिहास और छत्तीसगढ़ के उत्कीर्ण लेख भी महत्त्वपूर्ण हैं। ये दोनों रचनाएँ अभी अप्रकाशित हैं। आपने कला मासिक पत्रिका एवं जरनल आफ न्यूमिस्मेटिक सोसाईटी आफ इन्डिया का सम्पादन भी किया है। आप पुरातत्त्व विभाग में उप संचालक पद से सेवानिवृत्त हुये हैं। आपने अपने सेवा काल में रायपुर एवं जबलपुर के पुरातत्व संग्रहालयों की साजसज्जा की हैं । शान्ति नाथ जैन कला संग्रहालय खजुराहो की साजसज्जा भी आप अपने ही निर्देशन में करा रहे हैं । आपने हिन्दी में पुरातत्व विषयक एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी लिखा है जो प्रकाशन की प्रतीक्षा में है । इस समय आप जबलपुर में रहते हैं ।
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