________________
४४ पं० जर मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड जोग पच्चीसी, पंचचरण कवित्त, द्वादश भावना बावनी, जिन स्तुति, आदिनाथ स्तुति, २४ तीर्थहरों की पूजायें, अंग पूजा, फुटकर भजन, पञ्चमकाल की विपरीत दशा और प्रवचनसार पद्यानुवाद आदि प्रसिद्ध हैं। यद्यपि कवि स्वयं को अल्पज्ञ मानता है, पर इनकी रचनाओं की कोटि उत्कृष्ट मानी गई है।
कवि ने अपनी रचनायें प्रायः स्वान्तः सुखाय एवं जिन भक्तिवश लिखी है। उनकी रचनाओं में पूजन-भजनों के अतिरिक्त अनेक संस्कृत-प्राकृत आध्यात्मिक ग्रन्थों के पद्यानुवाद प्रमुख हैं। कवि ने अपनी रचनाओं में सवैया, कबित्त आदि छन्दों का प्रयोग किया है। इन्होंने सर्वतोभद्र, कटारबन्ध, कमलबन्ध आदि मिश्रबन्ध की भी रचनायें की हैं। इन रचनाओं से कवि की अद्भुत कवित्वशक्ति का परिचय मिलता है।
इनकी अधिकांश रचनाओं में आध्यात्मिकता, उद्बोधनात्मकता तथा भक्तिवाद के दर्शन होते हैं। बुन्देल खण्ड में ये अत्यन्त लोकप्रिय है। इनमें मानव मात्र को स्वयं को पहचानने का मार्ग बताया गया है। ये रचनायें हिन्दी जगत में भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है । प० ठाकुरदास जी बी० ए० शास्त्री
टीकमगढ़ जिले के यशस्वी जैन विद्वानों में पं० ठाकुरदास जी शास्त्री का महत्वपूर्ण स्थान है। आपका जन्म तालबेहट जिला ललितपुर में हुआ था। बाद में आप टीकमगढ़ में आकर रहने लगे थे। बी० ए० एवं शास्त्री करने के पश्चात आपने शिक्षा विभाग में अध्यापन किया। आप संस्कृत, हिन्दी व अंग्रेजी के बहश्रत विद्वान थे। जैन धर्म में विशेष रुचि होने के कारण आपने जैनशास्त्रों का गहन अध्ययन किया। आपकी प्रतिभा से तत्कालीन ओरछा नरेश श्री वीरसिंहज देव अत्यन्त प्रभावित थे। साहित्यिक रुचि के कारण श्री बनारसीदास जी चतुर्वेदी और श्री यशपाल जन से भी आपका सम्बन्ध रहा। आध्यात्मिक सन्त पंडित गणेश प्रसाद जी वर्णी भी आपसे अत्यन्त अनराग रखते थे।
बाबजी शिक्षा-संस्थाओं के संचालन में बड़े दक्ष थे। इसीलिये आप श्री वीर दि० जैन संस्कृत विद्यालय. पपौरा के १८ वर्ष तक मंत्री रहे । आपके मंत्रित्व काल में विद्यालय की बड़ी उन्नति हुई। उनके समय में विद्यालय से ऐसे योग्य छात्र निकले जा आज जैनों में चोटी के विद्वान् गिने जाते हैं । निःसंदेह बाबूजी एक सजीव संस्था थे । आपका जीवन सादा और विचार उच्च थे।
बाबूजी कुशल लेखक और वक्ता थे। आपके अनेक महत्वपूर्ण लेख है जो वर्तमान शोधकर्ताओं के लिये मार्ग दर्शक हैं । आपका लेख, "अहार नारायणपुर ऐतिहासिक स्थल है" महत्त्वपूर्ण एव खोजपूर्ण है । यह अहार की प्राचीनता एव पुरातत्व की सामग्री पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है। आपने अतिशय क्षेत्र पपौरा का परिचय भी "पपौराष्टक" के नाम से संस्कृत में लिखा है । आपने संस्कृत मंगलाष्टक का हिन्दी में पद्यानुवाद भी किया है । आप अपने समय के प्रभावी विद्वान् एवं वक्ता रहे हैं। प्रो. सुखनन्दन जी
प्रो० सुखनन्दनजी टीकमगढ़ जिले के व्युत्पन्न विद्वान, कुशल एवं निर्भीक लेखक और वक्ता के रूप में जाने जाते रहे। आपका जन्म बरमा ताल नामक छोटे से ग्राम में हुआ था। आपने संस्कृत-हिन्दी में एम० ए० एवं साहित्याचार्य की उपाधियां प्राप्त की। आप एक साथ हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी के विद्वान् रहे हैं। आपने सहारमपुर गुरूकुल में प्रधानाचार्य एवं व्याकरण-साहित्याध्यापक के पद पर कार्य किया । आप बहुत समय तक श्री दि० जैन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़ौत में रीडर एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष रहे है । जनदर्शन में नयवाद पर शोध प्रबन्ध लिखकर पी० एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। आपकी रुचि अध्ययन, चिन्तन, प्रवचन और लेखन में रही है । आप उच्च कोटि के लेखक एवं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org