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जैन पंडित परंपरा: एक परिदृश्य ३७
९. बालचंद सिद्धान्तशास्त्री
१९०५-१९८८ सोरई शोधक १०. पं० परमेष्ठीदास
१९०८-१९८१ महरौनी पत्रकार, समाजसेवी ११.५० परमानंद शास्त्री
१९०८-१९८० पन्ना विद्वान्, शोधक १२. डा० जगदोशचंद्र जैन
१९०९
बंबई शोधक, शिक्षक, लेखक १३. डा. महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य १९११-१९५९ खुरई न्यायाचार्य, शिक्षक, लेखक १४.५० पन्नालाल साहित्याचार्य १९११
सागर धर्म-साहित्य के उद्गाता १५.५० इन्द्रचन्द्र शास्त्री
१९१२-१९८६ हिसार लेखक, शिक्षक १६. डा० ज्योतिप्रसाद जैन
१९१२--१९८८ मेरठ शोधक, विद्वान् १७. डा० दरबारीलाल कोठिया १९१३
सोरई न्यायाचार्य, लेखक १८.५० नाथूलाल शास्त्री
१९१३
जयपुर शिक्षक, प्रतिष्ठापक १९.५० हीरालाल कौशल
१९१४
ललितपुर शिक्षक, अनुष्ठानक २०. डा० नेमीचंद्र शास्त्री
१९१५-१९७४ राजस्थान शिक्षक, शोधक, लेखक २१. डा. लालबहादुर शास्त्री
आगरा परंपरापोषी विद्वान् २२. पं. बलभद्र जैन
आगरा संपादन, लेखन २३. श्री खुशालचंद्र गोरावाला १९१७
गोरा समाजसेवी सेनानी २४. डा० गुलाबचंद्र चौधरी
१९१७-१९८६ सिलोंडी प्रशासक, लेखक, शोधक २५. पं० अमृतलाल शास्त्री
१९१९
झांसी साहित्यरसिक विद्वान् २६. डा० कस्तूरचंद्र काशलीवाल १९२०
जयपुर इतिहास-शोधक २७.क्षु० जिनेन्द्र वर्णी
१९२१
पानीपत जैनेन्द्रसिद्धान्तकोष २८. डा. हरीन्द्रभूषण जैन
१९२१-१९८९ नरयावली शिक्षक, साहित्यसेवी २९. श्री बालचंद्र जैन
गोरखपुरा पुरातत्वविद् ३०. श्री लक्ष्मीचंद्र जैन
१९२६
सागर
जैन गणितज्ञ ३१.श्री नीरज जैन
१९२८
पुरातत्वी, समाजसेवी ३२. डा० नंदलाल जैन
१९२८
शाहगढ़ विज्ञानविद्, शिक्षक ३३. डा. कंछेदीलाल जैन
१९२९-१९८९ पथरिया शिक्षक, समाजसेवी ३४. डा. राजाराम जैन
१९२९
मालथौन प्राकृतविद, शोधक, शिक्षक ३५. डा० विद्याधर जोहरापुरकर १९३५ -
कारंजा शिक्षक, शोधक (ब) जनुष्ठानक पंडित ३६. वाणीभूषण जमना प्रसाद शास्त्री १९१४
शिक्षक, अनुष्ठानक ३७.५० मोहनलाल शास्त्री
१९१४
बरायठा साहित्यसेवी, प्रकाशक ३८.५० शिखरचंद्र जी प्रतिष्ठाचार्य १९१७
बछरोली प्रतिष्ठाचार्य ३९. पं० गुलाबचंद्र पुष्प
१९२४
टीकमगढ़ प्रतिष्ठाचार्य ४०.५० मोतीलाल मातंड
१९३२--- रिषभदेव प्रचारक, प्रतिष्ठाचार्य ४१.५० विमलकुमार सोरया
१९४०
मडावरा प्रतिष्ठापक सेवाभावी प्रकाशन का क्षेत्र विकसित किया। वस्तुतः इन्होंने शिक्षण का कार्य तो नहीं किया, पर शिक्षक तैयार करने की भूमिका बनाई। इन्होंने जैनधर्म के प्रचार और गहन अध्ययन की दिशाएं दो। सामान्य परिभाषा में, इनमें से अनेकों को पण्डित नहीं कहा जाता, पर उन्होने पंडितों के समान हो कार्य किये हैं । ये अपने युग की आदर्श मूर्तियां हैं।
रीठो
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