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________________ ६] कुवलयमाला कहा ' के आधार पर गोल्लादेश व गोल्लाचार्य की पहिचान ४५३ हीरापुरिया - हीरापुर (सागर) मझगैयां - मझगुवां (जि० छतरपुर, बक्स्वाहा के पास ) धमोनिया - धामोनी ( सागर ) । उपरोक्त ९ में से केवल चंदेरिया व मिलसैयाँ ही शेष हैं अन्य गोत्र नष्ट हो चुके हैं । ये सभी स्थान धसान नदी के दोनों ओर १५-२० मील के अंतर्गत ही हैं । ऊपर के विवेचन से यह स्पष्ट है कि ११-१२वीं से १८-१९वीं सदी तक गोलापूर्व जाति का मुख्य निवास नदी के दोनों ओर, अक्षांश २५ से २४ तक, था । कई लेखकों का अनुमान था कि गोलापूर्वी का मूल स्थान ओरछा राज्य (वर्तमान टीकमगढ़ जिला ) था । पर यह मत भ्रमजनक हो सकता है । ओरछा के अधिकतर भाग में (विशेषकर ओरछा के चारों ओर ४० मील तक ) गोलापूर्वी का निवास नहीं था । ललितपुर, सागर व छतरपुर जिले के कुछ भागों में गोलापूर्वी का प्राचीनकाल से निवास स्पष्ट सिद्ध होता है । ११ - १२वीं सदी से पूर्व गोलापूर्वी का निवास कहाँ था ? यह प्रश्न महत्वपूर्ण है । नवलसाह चंदेरिया ने वर्धमान पुराण में ८४ वैश्य जातियों की नामावली के बाद लिखा है । तिन में गोलापूर्व को उतपति कहीं बखान । संबोधे श्री आदिजिन, इक्ष्वाक वंश परवान || गोयलगढ़ के वासी तेस, आए श्री जिन आदि जिनेश । चरणकमल प्रणमैं धर शीस, अरु अस्तुति कीनी जगदीश ॥ तब प्रभु कृपावंत अतिभये, श्रावक व्रत तिनहू को दये । क्रियाचरण की दीनी सीख, आदर सहित गही निज ठीक ॥ पूर्वहि थापी नैत नु एह, अरु गोयलगढ़ थान कहेह । तातें गोलापूरब नाम, भाष्यों श्रीजिनवर अभिराम ॥ अधिकतर विद्वानों ने गोयलगढ़ को ग्वालियर माना है । परमानन्द शास्त्री ने इसे गोलाकोट माना है । लेकिन ई० १७६८ के इस कथन को क्या महत्व दिया जा सकता है ? ग्वालियर के आस-पास दूर-दूर तक गोलापूर्व जाति के निवास का कोई चिन्ह नहीं पाया गया है । ऊपर कहा जा चुका है कि गोलालोर व गोलसिंधारे जातियों का प्राचीन निवास भिंड के आस-पास मालूम होता है | एटा (उ० प्र०) के सं० १३३५ (१२७८ ई०) के एक लेख में मूलसंघ के गोललतक अन्वय के कुछ व्यक्तियों द्वारा तीन मूर्तियों की स्थापना का उल्लेख है । इस जाति के बारे में कोई अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं है । गोलापूर्व नाम की तीन अन्य अजैन जातियाँ हैं । इनमें गोलापूर्व दर्जी व गोलापूर्व कलार जातियों के बारे में भी कोई सूचना नहीं है | परंतु गोलापूर्व नाम की एक ब्राह्मण जाति के बारे में कुछ जानकारी प्राप्य है । गोला पूर्व ब्राह्मणों की जनसंख्या संभवतः एक से छह लाख के बीच होगी । इनका प्रमुख काम पौरोहित्य आदि नहीं, बल्कि खेती, जमींदारी आदि है । इनका निवास आगरा जिले के आस-पास है । आचार व्यवहार आदि से इन्हें सनाढ्य ब्राह्मणों से संबंधित माना गया है। ग्वालियर राज्य के उत्तरी भाग में ( अंबाह के आस-पास ) इनके कुछ गाँव थे । कई लेखकों ने इस बात की संभावना व्यक्त की है कि हो सकता है कि गोलापूर्व जैन व गोलापूर्व ब्राह्मण जातियाँ प्राचीनकाल में एक ही रही हों । परंतु विशेष अध्ययन से यह संभावित नहीं लगता । पर इस बात की पूरी संभावना है कि ये कभी एक ही स्थान की वासी रही होंगी। अगर गोलालारे, गोलसिंघारे, गोलापूर्व ब्राह्मण जातियाँ एक ही क्षेत्र के (आगरा, भिंड, इटावा आदि) निवासी थी, तो गोलापूर्व जैन भी कभी उसी क्षेत्र के वासी होने चाहिये । ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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