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सिद्धक्षेत्र कुण्डलगिरि ३६९ पट्टावलि कहना उपयुक्त नहीं है। अतः १२ वीं शताब्दी में कुण्डलगिरि के जो पट्टधर आचार्य महाचन्द्र हुए हैं, वे भट्टारक न होकर मुनि ही थे, यह स्पष्ट है । इस विवेचन से भी निश्चित हो जाता है कि दमोह जिले के कुण्डलपुर के पास का कुण्डलगिरि ही सिद्धक्षेत्र है । त्रिलोक प्रज्ञसि में जिस कुण्डलगिरि का उल्लेख है, वह यही है, अन्य नहीं ।
३-कुण्डलगिरि सिद्धक्षेत्र लगभग २५०० वर्ष पुराना है । यहाँ पहाड़ पर एक प्राचीन जिन मन्दिर है । इसे बड़े बाबा का मन्दिर कहते हैं । यहाँ एक कुण्डलपुर ग्राम के परिसर में और दूसरा कुण्डलगिरि पहाड़ के तलभाग में दो मठाकार प्राचीन जिन मन्दिर भी बने हुए हैं। सरकारी पुरातत्व विभाग द्वारा इन मन्दिरों को ब्रह्ममन्दिर कहा गया है। ये तीनों छठवीं शताब्दी या उसके पहिले के हैं। इन्हें सूचित करने वाला एक शिलापट्ट दमोह रेलवे स्टेशन पर लगा हुआ है। शिलापट्ट में जो इबारत लिखी गई है, उसका हिन्दी भाव इस प्रकार है :
जैनियों का तीर्थस्थान कुण्डलपुर दमोह से लगभग २० मील ईशान की तरफ है । यहाँ पर छठवीं सदी के दो प्राचीन ब्रह्ममन्दिर है। इनके सिवाय ५८ जैन मन्दिर है। मुख्य मन्दिर में १२ फीट ऊँची पद्मासन महावीर की प्रतिमा है । यहाँ पर हर साल माघ महीने के अन्त में जैनियों का बड़ा भारी मेला लगता है।
इप शिलापट्ट में ५८ मन्दिरों के साथ दो ब्रह्ममन्दिरों का उल्लेख कर उन्हें पुरातत्व विभाग द्वारा छठवीं सदी का स्वीकार किया गया है। इतना अवश्य है कि ५८ जिनमन्दिरों में बड़े बाबा का मुख्य मन्दिर और दो ब्रह्ममन्दिर छठवीं सदी के हैं । शेष जिन मन्दिर अर्वाचीन हैं। इसलिए यहाँ "बड़े बाबा" के मुख्य मन्दिर सहित दो ब्रह्म मन्दिरों का परिचय देना इष्ट प्रतीत होता है ।
(क) 'बड़े बाबा' के मुख्य मन्दिर का क्रमांक ११ है। जैसा उसका नाम है, उतना ही वह विशाल है । उसका गर्भालय पाषाण निर्मित है। पहले गर्भालय का प्रवेशद्वार पुराने ढंग का बहत छोटा था। उसमें सिंहासन पर विराजमान 'बड़े बाबा' की मूर्ति को कई शताब्दियों तथा तीर्थंकर महावीर की मूर्ति कहा जाता रहा । गर्भालय के बाहर दीवाल में जो शिलापट्ट लगाया गया है, उसमें भी उसे भगवान् महावीर की मूर्ति कहा गया है। किन्तु वस्तुतः यह भगवान् महावीर को मूर्ति न होकर भगवान् ऋषभदेव की मूर्ति है क्योंकि बड़े बाबा की मूर्ति में दोनों कन्धों से से कुछ नीचे तक बालों को दो-दो लटें लटक रही हैं और आसन के नीचे सिंहासन में भगवान ऋषभदेव के यक्ष-यक्षी अङ्कित किए गए हैं। मूर्ति पद्मासन मुद्रा में १२ फुट ६ इञ्च ऊँची है और उसकी चौड़ाई ११ फुट ४ इञ्च है। इसके दोनों पाव भागों में ११ फुट १० इञ्च ऊँचे खड्गासन मुद्रा में सात फणी भगवान पार्श्वनाथ के दो जिनबिम्ब अवस्थित हैं। साथ ही, प्रवेश द्वार को छोड़कर तीनों ओर दीवाल के सहारे प्राचीन जिनबिम्ब स्थापित किये गये है। मूल नायक बड़े बाबा अर्थात् भगवान् ऋषभदेव को छोड़कर ये सब जिनबिम्ब दोनों ब्रह्ममन्दिरों से और बर्रट गाँव से लाकर यहां विराजमान किये गए हैं। (क्षेत्र के अन्य जिनमन्दिरों में भी प्राचीन प्रतिमायें अवस्थित हैं । वे भी इन्हीं स्थानों से लायी गयी जान पड़ती है।) इस कारण गर्भालय की शोभा अपूर्व और मनोज्ञ बन गयी है । क्षेत्र की शोभा बड़े बाबा से तो है ही, अन्य भी ऐसी अनेक विशेषतायें हैं जिनके कारण यह क्षेत्र अपूर्व महिमा से युक्त प्रतीत होता है । इस कारण प्रत्येक वर्ष वहाँ माघ माह में मेला लगता है। श्री बलभद्र जी 'मध्यप्रदेश के जैनतीर्थ' पृ० १८९ में लिखते है कि 'ध्यान से देखने पर प्रतीत होता है कि बड़े बाबा और पार्श्ववर्ती दीनों पार्श्वनाथ प्रतिमाओं के सिंहासन मूलतः इन प्रतिमाओं के नहीं हैं। बड़े बाबा का सिंहासन दो पाषाण खण्डों को जोड़कर बनाया गया प्रतीत होता है। इसी प्रकार पार्श्वनाथ प्रतिमाओं के आसन किन्हीं खड्गासन प्रतिमाओं के अवशेष जैसे प्रतीत होते हैं। किन्तु यह सही नहीं लगता। बड़े बाबा का पृष्ठभाग, जिस शिला को काटकर यह मूर्ति बनाई गयी है, उससे जुड़ा हुआ प्रतीत होता है और यह हो सकता है
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