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३१२ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[ खण्ड तिलोयपण्णत्ती में प्रयुक्त कतिपय प्रमुख करण सूत्र निम्न हैं। यदि वृत्त की परिधि, 2, वृत्त की जीबा, 6, वृत्त खंड के चाप की लम्बाई, 5, वृत्त खंड की ऊंचाई (वाण), h, वृत्त को त्रिज्या, 7, वृत्त का व्यास, d, वृत्त का क्षेत्रफल, 4, है, तो
1. लम्बवृत्तीय बेलन का आयतन =/1072h 2. लम्ब प्रिज्म के छिन्नक आयतन =आधार का क्षेत्रफल x प्रिज्म की ऊंचाई
(यहाँ आधार का क्षे.10 = मुख भूमि x दोनों सतहों के मध्य लम्ब दूरी) 3. वृत्त की परिधि (P)=/2x10 4. वृत्त के चतुर्थांश की जीवा का वर्ग=272
2
6. वृत्त खंड का चाप = = [2{{d+h) - d]112
5. वृत्त की जीवा = = = [ (1)-(-)]" 7. वृत्त खंड की ऊँचाई =h= [ ] 8. वृत्त खंड का क्षेत्रफल = = =+/10 9. शंख (Conch) आकृति का आयतन = [ (विस्तार) - ( मुख) + ( मुख)]x
स्पष्टतः यतिवृषभ ने ग का जैन परम्परानुमोदित स्थूल मान 3 तथा सूक्ष्म मान / 10 स्वीकार किया है।
प्रतीकात्मकता-तिलोयपण्णत्ती में यत्र-तत्र अनेक बीज रूप प्रतीकों का प्रयोग हुआ है। इसकी अनेक संदृष्टियों (प्रतीकों) का आशय न समझ पाने के कारण वे अद्यावधि अपरिभाषित हैं। इन प्रतीकों का अतिविकसित रूप हमें टोडरमल के अर्थसंदृष्टि अधिकारों में देखने को मिलता है। इस ग्रंथ में रिण के लिए 'रि' एवं 1, मूल के लिए 'मू', जगश्रेणी के लिए '-', जग प्रतर के लिए '=', धन लोक के लिए '=', रज्जु के लिए 'र', पल्य के लिए 'प', सुच्यंगुल उत्सेघांगुल के लिए '2', आवलि के लिए '2', प्रतरांगुल के लिए '4', धनांगुल के लिए '6', गुणा के लिए '' प्रतीकों का प्रयोग हुआ है । प्रकरणों के साथ प्रतीकों के अर्थ में परिवर्तन अनेक असुविधाओं को भी जन्म देता है।
श्रेणी व्यवहार गणित-ग्रंथ में व्यापक रूप से समान्तर एवं गुणोत्तर श्रेणियों की चर्चा है। विभिन्न स्थलों पर श्रेणियों के मुख (First Term), चय, गच्छ, सर्वधन (Sum of n Terms) निकालने के सूत्र एवं तत्सम्बन्धी उदाहरण दिये हैं। कुछ नवीन प्रकार की श्रेणियों की भी चर्चा है। इस ग्रंथ में समान्तर श्रेणी के लिए निम्नलिखित सूत्र उपलब्ध हैं :17
I sn = [2a+(n-1) a] IId - -, 1<a III an - a+(n-1). d
समान्तर श्रेणी के इन सूत्रों को स्पष्ट करने वाले प्रयोग भी ग्रन्थ में उपलब्ध हैं।
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