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वर्ण । पदार्थ का एक अभिन्न गुण २३५ अधिक तीव्रता वाले हों। इस प्रकार के बहुत से विकिरणों को विभिन्न उपकरणों द्वारा भी देखा जा सकता है। विद्युत चुम्बकीय विकिरणों के दृश्य स्पैक्ट्रम की प्रत्येक तरंग दैर्ध्य एक निश्चित रंग को प्रदर्शित करती है। जैसे-जैसे तरंग दैर्ध्य का मान बदलता है, रंग भी बदलता जाता है। न्यूनतम तरंगदैर्य जिसे हम आंखों से देख सकते हैं वह बैगनी रंग को प्रदर्शित करती है तथा अधिकतम तरंगदैध्य जिसे हम आंखों से देख सकते हैं वह लाल रंग को प्रदर्शित करती है । प्रकाश से मिलने वाले सामान्य प्रकाश में दृश्य क्षेत्र की सभी तरंगें विद्यमान होती हैं । जब यह प्रकाश किसी पिण्ड पर पड़ता है तो वह कुछ विकिरणों का अवशोषण कर लेता है तथा शेष को परावर्तित कर देता है। परावर्तित विकिरण हमारी आँखों तक पहुँचते है तथा उन परावर्तित विकरणों का जो सम्बन्धित रंग होता है उसका हमें आभास होने लगता है । वही रंग वस्तु का रंग कहलाता है । जब सूर्य का प्रकाश घास पर पड़ता है, तो घास हरे रंग को प्रदर्शित करने वाले रंग के विकिरणों को छोड़कर सभी का अवशोषण कर लेती है। केवल हरे रंग को प्रदर्शित करने वाले विकिरण ही घास से परावर्तित होकर हमारी आँखों तक पहुँचते हैं तथा हमें हरे रंग का आभास कराते हैं। यहाँ यह स्पष्ट है कि घास द्वारा हरे रंग के विकिरणों का परावर्तित करना तथा शेष सबों का अवशोषण कर लेना स्वयं घास का एक विशिष्ट गुण है। इस प्रकार रंगों के वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार घास का हरा दीखना या गुलाब का लाल दीखना इस तश्य पर आधारित है कि वे कौन-कौन सी तरंग दैर्यों का अवशोषण करते हैं तथा किस-किस का परावर्तन करते हैं। अतः यह निश्चित है कि विभिन्न तरंगों का अवशोषण तथा परावर्तन वस्तु के स्वयं के आन्तरिक गुण पर आधारित होता है।
किसी वस्तु द्वारा किसी विशिष्ट तरंग के परावर्तन के कारण ही हमें वस्तु के रंग का पता चलता हो, ऐसा नहीं है। कभी-कभी वस्तु स्वयं में से भी कुछ विशिष्ट रंगों के विकिरणों को उत्पन्न ( उत्सजित ) करती है । उदाहरण के तौर पर, जब किसी वस्तु का ताप बढ़ाया जाता है, तो पहले वस्तु अवरक्त विकिरणों का उत्सर्जन करती है, फिर ताप बढ़ाने पर वस्तु का रंग क्रमशः लाल, पीला तथा सफेद होने लगता है। बहुत अधिक ताप बढ़ाने पर वस्तु का रंग नीला दिखाई देने लगता है, जैसा कि कुछ तारों का रंग होता है। यहाँ एक बात ध्यान देने की यह है कि वस्तु का रंग क्रमशः परिवर्तित होता रहता है तथा वह उसके तापमान पर आधारित होता है। क्वार्क तथा ग्लुआन के रंग
आधुनिक विज्ञान के अनुसार, क्वाकं तथा ग्लूआन पदार्थ के सबसे छोटे कण हैं । प्रत्येक पदार्थ इनसे मिलकर ही बना होता है । क्वाक आवेशित कण होते हैं, जबकि ग्लूआन आवेशरहित कण होते हैं । ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक रिआन तीन क्वाकों से मिलकर बना होता है। इन क्वार्कों की ऊर्जाएँ समान होती है तथा प्रचक्रण की दिशा भी समान होती है। लेकिन सैद्धान्तिक रूप से समान ऊर्जा वाले तथा समान प्रचक्रण की दिशा वाले तीन क्वाक एक साथ रह नहीं सकते हैं। अतः बेरिआन का बनना असम्भव है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए थह माना गया कि क्वार्क तथा ग्लआन का कुछ न कुछ रंग अवश्य होता है । यह रंग नीला तथा लाल में से कोई एक होता है। इस प्रकार एक बेरिआन के तीनों क्वार्क समान ऊर्जा तथा समान प्रचक्रण की दिशा वाले तो होते हैं. लेकिन उनके रंग अलग-अलग होते हैं। यह प्रायोगिक तौर पर भी देखा जा चुका है कि क्वार्क तथा ग्लूआन में लाल, पीला तथा नीला में से कोई एक रंग अवश्य होता है।
__क्वार्क की तरह ही प्रति क्वार्क भी होते हैं । प्रति क्वार्क का रंग भी प्रतिरंग होता है। जब एक क्वाकं किसी प्रतिरंग के प्रतिक्वार्क के संयोग में आता है, तो एक मेसॉन बनता है। यह मेसॉन रंगहीन होता है। मूलभूत कणों क्वार्क तथा ग्लुआन के रंगों की व्याख्या करने के लिए एक नये गतिकी सिद्धान्त का प्रतिपादन भी किया गया है, जिसे 'प्रमात्रा रंग गतिकी' कहते हैं।
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