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२२० पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड
'निर्विकल्पक ज्ञान' के समतुल्य है। जिनभद्र इस ज्ञान को 'व्यंजनावग्रह' मानते हैं, जबकि सिद्धसेन इसे अर्थावग्रह का पूर्ववर्ती मानते हैं । इससे स्पष्ट है कि चक्षु-मन के अतिरिक्त चारों इन्द्रियों से होने वाला व्यंजनावग्रह दर्शन की कोटि में नहीं आता। लेकिन सिद्धसेन के अनुसार, दर्शन और ज्ञान की प्रक्रिया सम-सामयिक होती है और साधनभेद होने पर भी व्यंजनावग्रह और दर्शन की कोटि समतुल्य है । परन्तु दर्शनपूर्वक ज्ञान की मान्यता से ऐसा प्रतीत होता है कि अनेक दार्शनिक सिद्धसेन के मत को नहीं मानते। वे दर्शन को पदार्थ और इन्द्रिय के सम्पर्क से पूर्ववर्ती प्रक्रिया मानते हैं। यह मत सहज बो होता । इससे 'दर्शन' अनुपयोगी सिद्ध होता है। अतः इसे 'अर्थावग्रह की पूर्वप्रक्रिया मानना अधिक तर्कसंगत लगता है।
इन्द्रिय और पदार्थ के प्रथन सम्पर्क के उपरान्त कुछ समयों में अनेक बार वस्तु दर्शन होता है, तब किंचित मन के योग से वस्तु के आकार, रूप आदि कुछ विशेषताओं का ज्ञान होता है। इस स्थिति में दर्शन की प्रक्रिया 'अवग्रह' नामक दूसरे चरण का रूप ले लेती है । इस प्रकार पदार्थ-विषयक विकल्प बुद्धि अवग्रह कहलाती है। यह चरण उत्तरवर्ती चरणों का प्रेरक है और ज्ञान को पूर्ण तथा विशिष्ट निश्चयात्मक रूप देने में सहायक है। अवग्रह-ग्रहीत जाति-सामान्य के रूप में विकल्पित पदार्थों के विषय में विशेष ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा या विचारणा ईहा नामक चरण है। सफेद रूप को देखकर यह बगुला है या पतंग-रूप संशय होता है, रस्सी-सर्प संशय होता है। इसके लिये बार-बार दर्शन एवं अवग्रह की प्रक्रिया अपनाई जाती है और फिर मानसिक विश्लेषण द्वारा निश्चयोन्मखता की ओर प्रवत्ति होती है। यह ईहा-प्रवृत्ति अवग्रह प्रक्रिया का कार्य है एवं ज्ञान-प्रक्रिया का तीसरा चरण है । ईहा में किये गये बौद्धिक विश्लेषण से निर्णयात्मक निष्कर्ष पर पहुँचने के चरण को 'अवाय' कहते हैं। यह चौथा चरण है । अवाय प्रक्रिया से निर्णीत वस्तु को कालान्तर में स्मरण रखने या विस्मत न करने की योग्यता या प्रक्रिया को 'धारणा' नामक पाँचवां चरण कहते हैं। यह स्मरणात्मक ज्ञान ही बाद में अक्षरात्मक श्रुत का रूप लेता है। अवाय के समान धारणा भी मुख्यतः मन या बुद्धि-व्यापार है। इन पाँचों चरणों का संक्षेपण सारणी ३ में दिया गया है । शास्त्रों में बताया गया है कि यथार्थ ज्ञान की स्थिति में ये पाँचों
सारणी ३ : ज्ञान प्राप्ति के पांच चरणों का संक्षेपण दर्शन अवग्रह ईहा
अवाय
धारणा १. स्वरूप वस्तु सामान्य का वस्तु सामान्य का वस्तु विशेष की वस्तु विशेष का स्मरण
ज्ञान पहिचान के लिये निर्णय
क्षमता
बौद्धिक विश्लेषण २. प्रकृति दर्शन रूप
दर्शन + ज्ञान रूप मनो-व्यापार मनो-व्यापर ज्ञान रूप ३. भेद चार
(चक्षु, अचक्षु, (अर्थ, व्यंजन)
अवधि, मनः पर्यय) ४. साधन इन्द्रिय-अर्थ का इन्द्रिय-अर्थ का अवग्रह ग्रहोत मनो-व्यापार मनः संस्कार प्रथम सम्पर्क सम्पर्क + किंचित् पर मनो-व्यापार
मनो-व्यापार ५. स्थायित्व असंख्यात एक समय, असंख्यात अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त असं० समय समय
समय ६. कार्य दर्शन दर्शन + ज्ञान विश्लेषणात्मक
निर्णय
वासना ७. उदाहरण कुछ है
रूपमात्र है सफेद-काले रूप श्वेत रूप है
का विश्लेषण
दर्शन
दो
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