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पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
मेरे मामा जी रतनचन्द्र जैन स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, जबलपुर
मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे मामाजी जब छोटे थे, तो उनकी बड़ी चुटैया थी। उसकी गांठ खोलने में मुझे बड़ा आनन्द आता था। जिस प्रकार मेरे नानाजी ने मुझे धार्मिक संस्कारों की रुझान दी, उसी प्रकार मेरे मामाजी ने भी मझे क्रान्तिकारी देश-सेवा के बदले सत्यनिष्ठ देश-सेवा एवं पारिवारिक कर्तव्यों के निर्वाह की भावना को जगाने में अत्यन्त धैर्य एवं चतुराई से काम लिया। अन्यथा मैं तो बहक ही जाता। मेरे जैसे अनेक युवकों को उन्होंने सन्मार्ग मैं लगाया होगा, ऐसा मेरा विचार है ।
मुझे बचपन से ही हिन्दीसेवी वंशीधर जी डयोड़िया, बाबा गोकुल प्रसाद जी एवं पंडित जी का आशीर्वाद रहा है। वर्तमान में मेरी अनेक सामाजिक, राजनीतिक व अन्य प्रवृत्तियों में लगे रहने का श्रेय इस त्रिपुटी को ही है। मैं चाहता हूँ कि पंडित जी अमृतमयी वाणी को कैसेट आदि के माध्यम से स्थायी रूप दिया जावे । मेरे उन्हें शतशत प्रणाम।
अमर रहे व्यक्तित्व तुम्हारा मल्लिनाथ शास्त्री मद्रास
'विद्वानेव विजानाति, विद्वज्जनपरिश्रमं । की नीति के अनुसार, पण्डित जी की प्रशंसा किये बिना नहीं रहा आ सकता। वे शास्त्रमर्मज्ञ, अटूट श्रद्धालु एवं महान् व्यक्ति हैं । वे आचार्य-मुनि भक्त, आचार्य विद्यासागर जी के अनन्य बुद्धिजीवी सेवक, एकान्तवाद के दूषक एवं अनेकान्तवाद के पोषक हैं। उनकी कृतियों एवं प्रवचनों में उनको विद्वत्ता का परिचय मिलता है। भगवान् से प्रार्थना है कि ऐसा ज्ञानवृद्ध एवं तपोबुद्ध व्यक्तित्व अमर रहे और धर्म की जाज्वल्यमान धवल पताका फहराता रहे ।
डा. पन्नालाल साहित्याचार्य जैन गुरुकुल, मढ़ियाजो, जबलपुर
पंडित जी के प्रति मेरा गुरु तुल्य श्रद्धाभाव है । वे मेरे विद्यागुरु के सहाध्यायी रहे हैं । इन्होंने अपने पिताजी से चारित्र निष्ठा, गुरूणां गुरुः वरैया जी से व्यवहार की प्रामाणिकता, बड़े वर्णी जी से निस्पृहता और पं० देवकीनन्दनजी से सामाजिक कार्यों में निपुणता प्राप्त की है । ये सभी उनके विशेष गुण हैं ।
पंडित जी अनेक संस्थाओं के मार्गदर्शक हैं, सिद्धान्त ग्रंथों को वाचना के सर्जक हैं और 'अध्यात्म अमृत कलश के पुरस्कृत लेखक है। उनके साधुवाद-प्रसंग पर मेरे शतशः अभिवादन ।
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