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बच्चों के लिये ध्याय योग का शिक्षण १६९
के द्वारा पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। नृत्य के द्वारा गणित तथा संगीत के माध्यम से विज्ञान सिखाया जाता है। इस विधि से अध्ययन कर इस स्कूल के बच्चों ने जिले के तीस स्कूलों में पढ़ने में पहली तथा गणित में पांचवी वरीयता प्राप्त की। मन और मस्तिष्क के विकास को संबंधित करने, मानव प्रकृति के द्विविध पक्षों-मन एवं मस्तिष्क, अन्तः एवं वाह्य, दायां और बायां, प्रतिमा एवं तर्क में सन्तुलन लाकर अधिक व्यावहारिक बनने, जीवन के लिये आदर्श लक्ष्य निर्धारित करने, व्यक्तित्व-संक्रमण की दुर्घटना को निरस्त करने एवं जीवन की दिशा प्रशस्ति के लिये शिक्षक और विद्यार्थियों के लिये योग शिक्षा ही एक उत्तम साधन सिद्ध हो रही है।
स्कूली बच्चों के लिये शिथिलीकरण
समाज के विकास के लिये शिक्षा प्रथम वरीयता है । इसलिये शिक्षण के लिये उत्तम सामग्री और उत्तम विधि का निर्णय अत्यावश्यक है । अभी तक हमारी शिक्षा का उद्देश्य हमें बौद्धिव एवं व्यावसायिक बनाना रहा है। पर यह विधि हमें उच्चस्तर का या अच्छा मानव नहीं बना पाती। यह काम संरक्षको एवं धर्म-संस्थाओं का मान लिया गया। इस मान्यता में भी पर्याप्त सुधार अपेक्षित हैं। आधुनिक शिक्षापद्धति की इस कमी को दूर करने के लिये योग शिक्षा बहुत उपयोगी है। इससे न केवल हम अच्छे मनुष्य बनेगें, अपि तु इससे हमारे शिक्षण की गति तीब्र होगी । शिथिलीकरण के अभ्यास से मस्तिष्क का केन्द्रीकरण उत्तम होता है। मनोविज्ञानी हालेम के अनुसंधान विवरण हमारे मत का समर्थन करते हैं।
हार्लेम ने शिथिलीकरण की यौगिक विधि का उपयोग किया है। यह आधुनिक बायोफीड-बैंक पद्धति का प्राचीन अनुरूप है। उसने दस मिनट के शिथिलीकरण अभ्यास के बाद दस दिन तक विद्यार्थियों को पढ़ाया। जब दो सप्ताह बाद इनके मनोवैज्ञानिक परीक्षण किये गये, तब यह पाया गया कि इनकी जागरूकता, एकाग्रता, स्मरणशक्ति एवं प्रज्ञा में सामान्य विद्यार्थियों की तुलना में पर्याप्त सकारात्मक वृद्धि हई। इलेक्ट्रोमाइलोग्राफ के निरीक्षण बताते हैं कि ये विद्याथीं शारीरिक दृष्टि से भी पर्याप्त शिथिलीकृत थे। इसका तात्पर्य यह है कि ये मानसिक रूप से भी शिथिलीकृत थे। यह शिथिलीकरण पर्याप्त समय तक बना रहा। पर्याप्त स्मरणशक्ति और एकाग्रता का महत्व वे सभी जानते हैं जिन्होंने अपनी स्कूल-शिक्षण एवं वार्षिक परीक्षाओं के कष्ट सहन किये हैं। काश, हमें उस समय शिथिलीकरण की विधि का ज्ञान होता ।*
पंचपरमेष्ठी वाचक मन्त्र चित्त शुद्धि के लिये आवश्यक हैं । लेकिन कामना के लिए मन्त्र जाप उचित नहीं है। भले ही मन्त्र जापी जीव अपने पाप क्षय और पुण्य बन्ध से लाभान्वित हो, पर उसे मन्त्र का फल मान लिया जाता है। ऐसा व्यक्ति लाभ नहीं पाता, तो उसकी उस मन्त्र में अश्रद्धा हो जाती है और वह मिथ्या मन्त्रों की ओर भी झुक जाता है। विद्यानुवाद नामक दसवाँ पूर्व है। उसमें मन्त्रादि वर्णन है। तथापि णमोकार मन्त्र अनादि है। भले ही शब्द प्राकृत भाषा के न रहें, वह किसी भी भाषा में हो, पंचपरमेष्ठी की पूज्यता सदा रही है । अतः वह मन्त्र अनादि ही है।
__-जगन्मोहनलाल शास्त्री
* "विहार स्कूल आव योग' द्वारा प्रकाशित 'योग' नामक अग्रेजी पत्रिका से सानुमति रूपान्तरित ।
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