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बच्चों के लिये ध्यान योग का शिक्षण
डॉ. स्वामी शंकर देवानन्द सरस्वती सत्यानन्दाश्रम, रोजवे, नोउ साउथ वेल्स, आस्ट्रेलिया
शिक्षा के क्षेत्र में नवीन एवं सार्थक विधियों की खोज युगों से चल रही है। लगता है कि इस युग में योग और उसके उपयोगों के ज्ञान से इस क्षेत्र में परिवर्तन आनेवाला है। मानव के मस्तिष्क के विभिन्न पावों के कार्यों से सम्बन्धित अनुसंधानों से योगविद्या के प्रसार एवं चेतना की जागति की संभावनाओं के कारण ध्यान-योग को जीवन पद्धति के रूप में स्वीकृत करने की आवश्यकता अनुभव में आई है।
हमारा मस्तिष्क दो प्रमस्तिष्क्रीय गोलाधों में विभाजित है । वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्रतीत होता है कि प्रत्येक गोलार्घ का कार्य स्वतन्त्र तथा भिन्न-भिन्न है। दक्षिणी गोलार्ध हमारे जीवन की प्रतिमा एवं स्थानिक ( spatial ) रूपों को निर्धारित करता है। वायां गोलार्ध वैश्लेषिक तथा रेखीय क्षमताओं से सहचरित होता है। अभी तक हमारी शिक्षा मुख्यतः वायें गोलार्ध की ओर ही केन्द्रित रही है, जिसमें अध्ययन, लेखन और गणित के समान सरल. वैज्ञानिक एवं तार्किक विषयों को ही महत्व दिया जाता है। इसमें कला, नृत्य तथा अन्य रचनात्मक प्रवृत्तियों एवं गुणात्मक प्रतिभाओं की ओर नगण्य ध्यान दिया गया है। अब शिक्षाशास्त्रियों की यह मान्यता है कि इस स्थिति में हमारा ज्ञान एकांकी रहता है और हमारी शिक्षा पूर्ण नहीं मानी जा सकती। इससे जीवन में अरुचिकर प्रभाव भी हो सकते है। अमरीका के इन्डियाना विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्री जेरी स्मिथ के अनुसार आज शिक्षक जोवन के रहस्य से अपरिचित हैं और उन्होंने शिक्षा को एक कठोर पाठ्यक्रमों की परिधि में बांध दिया है। वे हमें मानव के पवित्र उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक नहीं बनाते। शिक्षा-महाविद्यालय के बुलेटिन में कहा गया है कि अब समय आ गया है कि शिक्षकों को आध्यात्मिक, कलात्मक, प्रतिभात्मक, पराभौतिक एवं प्रेरणात्मक विकास की दिशाओं की ओर शिक्षा में ध्यान देना चाहिये । व्याख्यान, पाठ्यपुस्तकें, परीक्षा और मूल्यांकन को सुरक्षित पद्धति का हमने बहुत समय तक उपयोग कर लिया है।
मस्तिष्क का एकीकरण
विवियन शेरमान ने बताया है कि वर्तमान शिक्षापद्धति मस्तिष्क के दोनों गोलार्धा के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा है। केवल वायें गोलार्ध को विकसित करनेवाली शिक्षापद्धति अशुद्ध और अवास्तविक धारणाओं पर आधारित है। न्यूटन और आइन्स्टीन के समान वैज्ञानिकों की महान खोजे प्रतिमात्मक स्फुरण ( फ्लैश ), समग्र विश्व की प्रकृति की अन्तर्दृष्टि तथा भौतिक विश्व के आधारभूत सम्बन्धों के अन्तर्ज्ञान के कारण ही संभव हो सकी हैं। इन्हें फिर उन्होंने बौद्धिक रूप से विकसित किया।
मस्तिष्क के दोनों भागों के एकीकरण की प्रक्रिया में शोधकर्ताओं ने ध्यान, योग, आसन, प्राणायाम, वायोफीड-वैक आदि के प्रभावों का अध्ययन किया है। वे यह प्रयत्न कर रहे हैं कि मस्तिष्क के कार्य करने को प्रक्रिया
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