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११४ पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड
व्याकरण के अनुसार भी, 'युजिर' और 'युज्' धातु से बननेवाले योग शब्द के दो अर्थ होते हैं इनमें से एक अर्थ तो समाधि होता है। पर सामान्य व्यवहार में योग शब्द जोड़, मिलन, बन्धन, संयोग आदि की भौतिक क्रियाओं का निरूपक है। इस दष्टि से जैन-सम्मत अर्थ अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। योग का एक अन्य अर्थ जोतना भी है जिसके बिना अच्छी आध्यात्मिक प्रगति न हो सके। सारणी में विभिन्न भारतीय पद्धतियों में योग शब्द के अर्थ दिये गये हैं। इससे प्रकट होता है कि योग शब्द की अर्थयात्रा आध्यात्मिक विचार धारा के विकास के साथ भौतिक क्रियाओं से प्रारम्भ होकर आध्यात्मिक विकास की प्रक्रियाओं में विलीन होती है। इसीलिये जैनों ने प्रत्येक तत्त्व को भौतिक (द्रव्य) और आध्यात्मिक (भाव) रूप में वर्गीकृत कर विवरण दिये हैं। सारणी। से स्पष्ट है कि अन्य पद्धतियों में,
पद्धति
समकक्ष पारिभाषिक शब्द
वेद
उपनिषद् गीता योग दर्शन बौद्ध जैन
सारणी १ : योग शब्द के अर्थ
अर्थ जोड़ना, इन्द्रिय वृत्ति, इन्द्रिय नियन्त्रण ब्रह्म से साक्षात्कार कराने वाली क्रिया कर्म करने की कुशलता चित्त वृत्ति निरोध बोधि प्राप्ति (i) मन, वचन, शरीर की प्रवृत्ति (ii) आत्माशक्तिविकासी क्रिया (हरिभद्र) जोड़ना, समाधि, जोतना
योग योग, कर्मयोग योग समाधि योग, आस्रव योग, समाधि, ध्यान
व्याकरण
गोग शब्द का अर्थ जैनों की मूल मान्यता से भिन्न है। उत्तरवर्ती जैनाचार्यों ने अर्थ-समकक्षता प्रदान की है। सामान्य जन में भी यही अर्थ रूढ़ है। इसके मूल अर्थ का अध्यात्मीकरण हो गया है और इसे आत्मा-परमात्मा के मिलन के रूप में तक प्रकट किया जाता है। यह स्वाभाविक है कि योग का ऋणात्मक (विभेदात्मक) अर्थ भी पाया जावे। इसलिये बहिर्मुखी दृष्टि के निरोध और अन्तर्मुखी दृष्टि की जागृति के रूप में इसे व्यक्त किया जाता है। वस्तुतः योग अभ्यास से शरीर, वचन एवं मन के दूषित मल बाहर हो जाते हैं और अन्तर्मुखी ऊर्जा प्रकट होती है । इसके विपर्यास में, योगी शब्द का अर्थ प्रायः सभी पद्धतियों में एकसा ही माना जाता है। यह एक विशेष प्रकार के अ-सामान्य एवं आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न व्यक्तित्व का निरूपक है।
योग के समान ही संयम शब्द भी है। योग दर्शन में इसका अर्थ धारणा, ध्यान एवं समाधि की श्रयो से लिया जाता है। जैन दर्शन में सम्यक् प्रकार से व्रतादि के पालन के लिये इन्द्रिय एवं प्राणियों की पीड़ा के परिहार के प्रयल से लिया जाता है। बौद्ध के यहाँ यह 'शील' हो जाता है। फिर भी, यह सभी जानते हैं कि संयम और योग परस्पर सम्बन्धित है।
ध्यान भी इसी प्रकार का एक महत्वपूर्ण शब्द है। बौद्ध दर्शन में शोल, समाधि एवं प्रज्ञा की त्रयो में ध्यान और समाधि समानार्थक ठहरते हैं। योग दर्शन में ध्यान समग्र अष्टांग योग का एक उच्च स्तरीय घटक है। जैन दर्शन में यह संवर एवं निर्जरा का एक घटक है। ध्यान को एकालम्बनी चित्त वृत्ति या चित्त वृत्ति को एकतानता की परिभाषा से पतंजल योग तथा जैन संवर-निर्जरा प्रायः समानार्थी लगते हैं। पर इनके अनेक विवरणों में भिन्नता पाई जाती है। इस भिन्नता के बावजूद भी दोनों के परिणाम एक समान होते हैं।
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