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जैन विद्याओं के कतिपय उपाधि-निरपेक्ष शोधकर्ता ९३
अपने ३४ वर्ष के अध्यापन-सेवा-काल में आपने जैन विद्याओं में गणित विषयक सामग्री को कोटि को ओर अनेक शोध पत्रों, संपादकीयों तथा पुस्तिकाओं। (बेसिक मैथेमेटिक्स-१, २, जयपुर) के माध्यम से भारत तथा विश्व के गणितज्ञों का ध्यान आकृष्ट किया है। आपने जैन गणित के लौकिक एवं लोकोत्तर रूपों को पथक-पृथक् रूप में वर्णित किया और वर्तमान 'समुच्चय सिद्धान्त' के वीज जैन शास्त्रों में पाये । आप कर्म सिद्धान्त को गणिनीय रूप देने के प्रयास में हैं और उससे सम्बन्धित उपयुक्त पारिभाषिक शब्दावली आपने बनाई है। उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार आरने जैन गणित सम्बन्धी लगभग ५० शोध लेख लिखे हैं। इनमें से कुष्ठ विदेशी पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए हैं। इस विषय से सम्बन्धित लोकप्रिय लेखों की श्रेणी अलग है। अभी आप 'त्रिलोकसार' पर काम कर रहे हैं। आप ने अनेक गोष्ठियों में भाग लिया है। आप जैनोलोजिकल रिसर्च सोसाइटी, त्रिलोक शोध-संस्थान, मदर इस्टीट्यूट, विद्यासागर शोध-संस्थान आदि अनेक संस्थाओं में सम्बद्ध रहे हैं।
४. श्री कुन्दनलाल जैन (१९२५-) : बोना के अत्यन्त निर्धन परिवार में जन्मे श्री जैन की जैन विद्याओं के सम्वर्धन में प्रारम्भ से ही रुचि रही है। उनकी शिक्षा-दीक्षा बरुआसागर, सागर और वाराणसी में हुई। इसके बाद का आंग्ल पद्धतिक अध्ययन स्वाध्यायो रूप में हुआ। आजीविका काल में आप दिल्ली, मथुरा, वासौदा तथा अन्तिम तीस वषं दिल्ली में रहे । आपने 'त्रिषष्ठि शलाकापुरुष' पर काफी शोधकार्य किया पर अनेक नियमापनियम उसको उपाधि हेतु संप्रेषण में बाधक बन गये। पांडुलिपियों की खोज और वर्गीकरण पर आपने काम किया है और दिल्ली के ग्रन्थ भण्डरों में उपलब्ध ग्रन्थों का 'दिल्ली जिन ग्रन्थ रलावली' के रूप में अनेक भागों में विवरण प्रस्तुत किया है। इसका एक भाग भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित किया है। आपने अनेक अल्पज्ञात जैन कवियों और उनकी रचनाओं की खोज कर लगभग ७० शोध लेख लिखे है । वैसे आपके सभी प्रकार के लेखों की संख्या २०० की सीमा पार कर गई है। आपने वादिराज, पुअराज, ७० ज्ञानसागर, ब्र० उडू, अजिका पल्हण, देवोदास भाय जी, भ० सकल कीति, भ० विश्वभूषण, बुलाकीदास, छुन्नूलाल, वारेलाल, बिहारीदास, राय प्रवीण, शिरोमणिदास आदि की कृतियों का परिचय दिया है । आपने पुरातत्व व मूर्तिकला के क्षेत्र में तारातम्बूल, गंजवासौदा, बडौत, नरवरगढ़, नरवर, मुरार, जैसलमेर, जोइणीपुर आदि पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है। आपके शोधलेख अनेक जैन-जनेतर पत्रिकाओं में मुद्रित हुए हैं। आप अनेक संस्थाओं से सम्बद्ध है। आपने अनेक राष्ट्रीय गोष्ठियों (जैन विद्याओं की) में भाग लिया है। रडिया और दूरदर्शन को भी आपने अनेक बार अपनी चर्चाओं का माध्यम बनाया है । आजकल आप हस्तिनापुर गुरुकुल में सेवानिवृत्त्युत्तर समाजसेवा कर रहे हैं।
५. डा० नन्दलाल जैन (१९२८-) : छतरपुर जिले के बड़ा शाहगढ़ ग्राम के मूल निवासी भारत के अनेक महा नगरों में व्यापार एवं व्यवसाय करते हए पाये जाते हैं। गोंडवाने के इस ग्राम में जन्मे श्री जैन शिक्षा-दीक्षा, आजीविका एवं शोधकार्यों के दौरान झुमरीतिलैया, काशी, टोकमगढ़, छतरपुर, रायपुर, बालाघाट, जबलपुर एवं रीवा में रहे है। इन्होंने जैन धर्म एवं सर्वदर्शन का अध्ययन करते हुए रसायन विज्ञान में ब्रिटेन तथा अमरीका में विशेषज्ञता प्राप्त की और यही आपका अध्ययन-विषय रहा। पर वंशानुग धार्मिक संस्कारों एवं व्यक्तिगत रुचि के कारण उन्होंने जैन दर्शन के वैज्ञानिक मूल्यांकन एवं उसमें वणित वैज्ञानिक तथ्यों के विवेचन पर काफो कार्य किया है । भौतिकी, रसायन, प्राणिशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र एवं आहार विज्ञान के विविध पक्षों पर आपके लगभग पांच दर्जन शोधपत्र प्रकाशित हुए है। अब वे अपनी शोध को एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करने में व्यस्त है। उनको यह धारणा है कि जन विद्याओं के विविध साहित्य में वर्णित वैज्ञानिक तथ्यों का आकलन ऐतिहासिक दृष्टि से ही समोचोनता पूर्वक किया जा सकता है । जैन दर्शन को भौतिक जगत सम्बन्धी अनेक मान्यतायें सैद्धान्तिक दृष्टि से आज भी जनाचार्यों को कीति को गाथा गा रही है। आपने दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय जन विद्या संगोष्ठियों सम्मेलनों में भाग लेकर अपनी
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