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समाज की परमोपकारी सचेतन निधि ब्र० पं० मणिकचन्द्र चवरे कारंजा, महाराष्ट्र
विगत पचास वर्षों से मैं पंडित जी की वेदाग इंसानियत से अत्यन्त प्रभावित हूँ। मैंने उनमें समीचीन सात्विक दष्टि, कल्याण भावना, ठोस तात्विक ज्ञान, अनेकानेक समृद्ध अनुभव और निरामय अमृतोपम धारावाही रसवती प्रतिपादना का साक्षात्कार पाया है। इस लाभ को देवदुर्लभ कहा जाय, तो अत्युक्ति नहीं होगी। उनकी पीयूषवाणी मुझे अनेक जगह सुनने को मिली। वह वाचा नहीं, उनकी आत्मा है, सहज है। इसका मूल है-निस्पृह कल्याण भावना, तन्मयता और विचारों का जागृत संतुलन । पूज्य गुरुदेव समंतभद्र जी महाराज ने खरई चातुर्मास के समय उनके दश-धर्म-प्रवचन सुनकर कहा था, "पंडित जी वास्तव में समाज की अदभत सचेतन निधि है"। पूज्य गुरुदेव ने इन शब्दों द्वारा अपना हृदय प्रकट किया है। पंडित देवकीनन्दन जी ने भी अपने जीवन के अन्तिम दिनों में ठीक ही आदेश दिया था, "मैं रहूँ या न रहूँ, मेरी जगह पंडित जगन्मोहन लाल जी को समझकर उनकी ही सलाह से निःसंकोच काम करते रहना"। हमारे गुरुकुल की अनेक जटिल समस्यायें उनके ही समुचित मार्गदर्शन से सुलझ सकीं।
मुझे उनका अनन्य साधारण भ्रातृ-वत्सल स्नेह अखंडरूप से प्राप्त है। पंडित जी के व्यक्तित्व की गरिमा के लिये एक उदाहरण काफी होगा। खुरई गुरुकुल के अधिष्ठाता पद के लिवे पूज्य समंतभद्र जी महाराज ने पूरी युक्ति-प्रयुक्ति के साथ पंडित जी का नाम सुझाया। परन्तु उन्होंने न केवल इसे अस्वीकृत ही किया, अपितु मेरा ही नाम प्रस्तावित कर दिया । आयु, विद्वत्ता, सेवा, त्याग-तपस्या में पंडित जी की श्रेष्ठता और मेरे निषेध के बावजूद भी अनन्यगतिकता में मुझे अधिष्ठाता बनने के लिये बाध्य होना पड़ा। वे उप-अधिष्ठाता ही बने रहे। सहज ही रामकथा का स्मरण हो आया। भरत ने भी तो राम जी के चरणों को विराजमान कर उन्हीं के नाम से राजकाज किया था। तेल-बत्ती जलती है और नाम दिये का होता है।
पंडित जी की कलम भी वाणी की तरह प्रभावक है। उनके प्रकाशित लेख तथा 'प्राक्कथन' यथार्थ दृष्टिदान करने में समर्थ एवं स्वयं पूर्ण हैं । वे 'गागर में सागर' भरते हैं। उनकी सभी कृतियाँ लोकादरता प्राप्त हैं। आपके 'अध्यात्म अमृत कलश' के पारायण से बाहुबली विद्यापीठ के अध्यक्ष नानासाहब आंदेकर जी एडवोकेट के जीवन में आये परिवर्तन को कहते हुए वे कभी नहीं अघाते ।
एक अतृप्त भावना
खुरई गुरुकुल में मानस्तंभ प्रतिष्ठा के समय आपके सुदीर्घ भाषण से मुझे परवार सभा का स्पष्ट इतिहास ज्ञात हुआ। तब से मेरी यह भावना है कि यदि गणेशप्रसाद वर्णी जैसी जीवन गाथा पंडित जी भी लिखें, तो समाज का कितना लाभ होगा ? ऐसे सैद्धान्तिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं सार्वजनिक सैकड़ों विषय एवं प्रसंग हैं जिनमें पंडित जी की अलौकिक दृष्टि, प्रतिभा एवं सामयिक सूझबूझ से लोकोत्तम घटनायें हुई हैं। इनमें अनेक प्रसंग तो ऐतिहासिक महत्व के हैं। कुछ प्रकरणों की ओर मैं संकेत देना चाहता हूं :
(i) खानिया चर्चा के पूर्व अपर पक्ष के विद्वानों से चर्चा ।
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