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१]
अन्य शंकाओं के सम्बन्ध में मेरा मत है :
चतुर्थ गुण-स्थान में निश्चय व्यवहार दोनों सम्यग्दर्शन है । जो सातवें गुण स्थान की बात है, सो जिन शासन ने व्यवहार की व्याख्या की है । भेदरूप वर्णन, सो व्यवहार और अभेदरूप, सो निश्चय । इस व्याख्या के अनुसार, सात तक भेदरूप, रत्नत्रय है, अतः व्यवहार है । और श्रेणी में अभेद् रूप है, सो यहाँ निश्चय है । निश्चय व्यवहार की व्याख्याओं में अन्तर है, अतः तदनुसार ही फैसला है ।
( iii )
I
आचार्य किसी नय से मिथ्या दृष्टि नहीं हो सकते । वे या मात्र व्यवहार सम्यक्त्वी थे या फिर उभय सम्यक्त्वी और उभय चारित्री थे ।
( i )
(ii)
(५) सामाजिक समस्या पर लेख
ये जिन शासन देव हैं या मिथ्या शासन देव ?
जगन्मोहन लाल जैन शाखी, कटनी
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परमवीतरागी जिनानुगामी दिगम्बर जैन धर्म का उच्चघोष करने वाली दि० जैन समाज के कुछ नेता वीतरागी प्रभु की पाद सेवा के साथ-साथ कुछ ऐसे सरागी सशस्त्र देवी देवताओं की पूजा आराधना-आरतीमन्त्र जप आदि का विधान करते है जिनकी आराधना का जिनागम में स्पष्ट निषेध है और जिनकी मान्यता महामिथ्यात्व माना गया है। कुछ दिगम्बर साधुजन भी इस कृत्य का सर्मथन करते हैं तथा इसका उपदेश भी देते हैं । इनकी आराधना से कष्ट निवारण की भी बात भक्त को बताते हैं तथा पूजा मंत्र जप अनुष्ठान की प्रेरणा भी देते हैं ।
कहीं कहीं शारदी पूर्णिमा के दिन दूध में प्रतिमा रात भर डुबोकर जप होता है और उस दूध को खाने का भी उपदेश होता है। अभी कुछ दिन पूर्व कलकत्ता के एक विद्वान द्वारा यह भी जानने में आया कि वहाँ शरद पूर्णिमा को मन भर दूध में प्रतिमा जी रात भर रखाई गई और सबेरे वह दूध जनता को बांट कर उसे पीने तथा औंट कर मिठाई बनाकर खा लेने का आदेश एक कथित जैनाचार्य द्वारा दिया गया जिनका वहाँ चातुर्मास हो रहा था ।
श्री सम्मेद शिखर जी बीस तीर्थकरों की निर्वाण भूमि है। जैनों की परमपावन तीर्थं भूमि है । पर्वत राज पर तो तीर्थङ्करों के निर्वाण स्थलों पर चरण चिह्न स्थापित हैं— नीचे तलहटी में भी दि० जैन वीस पंथी कोठी के साथ अनेकानेक मंदिर वेदियाँ हैं । दि० जैन तेरह पंथी कोठी में भी विशाल मंदिर, अनेक वेदियाँ तथा नन्दीश्वर की रचना-मानस्तंभ आदि हैं । पर्वत की उपत्यका पर प्रथम ही विशाल मानस्तंभ, उन्नत बाहुबली भगवान् तथा वर्तमान चौबीसी का मंदिर बना है । वीतराग प्रभु के पूजन-दर्शन आराधना के सर्वोत्तम साधनभूत सहस्रों जिन बिम्ब स्थापित हैं ।
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वीतरागधर्म के आराधक श्रावकों, सेठों एवं साहूकारों द्वारा उक्त निर्माण उनके हृदय के परम धर्म के परिचायक हैं । यहीं बाहुबली मन्दिर के समीप अभी कुछ वर्ष पूर्व एक मन्दिर बनाया गया है जिसका नाम "समवशरण मन्दिर" रखा गया है । उसमें मूल वेदिका पर तो जिनेन्द्र अवश्य स्थापित हैं पर बाहर-भीतर- ऊपरनीचे सम्पूर्ण मन्दिर में सैकड़ों सरागी देवी-देवताओं का ही साम्राज्य है । भगवान एक फुट होंगे, तो सरागी देवता
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