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बजट:
१२
कुशल-कृपण आय-व्यय लेखक माह
सरो का हिसाब १९ दिसम्बर, १९२६, मंगलवार, दिनांक १२ फरवरी १९२१ रविवार, सदस्य संख्या ३
942 मा 15 इक्का, आती-जाती ५०/ अनाज ।
खाना ६० घी
1) इक्का २५J कपड़ा
95 टिकिट (गया से ईसरी) २० शाक ५॥ तेल
खाना ३) मसाला
11 ककड़ी
मजूरी
...
पान
... -
वना
रवड़ी ॥ साना
पानी गराई ९)बच्चों को २५ दूध २० सफर .२५ विविध २६४०
.5 इका
२४३) रिवाइज्ड इसमें किराया शामिल नहीं है।
AN) टिकिट
टिकिट गया से ईसरी .5 पोस्टेज .2 कुली
ANT गया से बनारम K) सिलक वाको 2120
(३) दैनंदिनी लेखक जैन उप-जातियों की उत्पति
(अ) परवार-जयपुर से प्राप्त ईडर के भट्टारकों को पट्टावली से ज्ञात होता है कि गुप्तिगुप्त भट्टारक विक्रमादित्य के वंशज थे और परवार थे। क्षत्रियों में एक जाति परमार या पमार है, यही शब्द उत्तरकाल में परवार हो गया । यह तथ्य पन्ना के एक क्षत्रिय से भेंट एवं सागार धर्मामृत की पं. लालाराम जी लिखित हिन्दी टीका के उद्धरण से भी पुष्ट होता है । सम्भवतः ये क्षत्रिय किसी जैन मुनि के उपदेश से जैन बन गये होंगे । अहिंसा के पूजारी होने से इन्होंने वैश्यों के व्यवसाय ग्रहण किये। बनारसी विलास में अनेक जातियों के इसी प्रकार निमित्त. वश जैन होने की बात लिखी है। इस प्रकार परवार जाति प(र) मार क्षत्रियों से उत्पन्न है और वह विक्रमादित्य से पूर्व की है, ईसा पूर्वकालीन है।
१२-१-१९२१
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