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पंडित जी के विविध रूप
पंडित जगन्मोहलाल शास्त्री के अनेक रूप हैं जिनके माध्यम से हम उनका परिचय पाते हैं। उनके ज्ञान-तपोधन की महिमा तो उनके प्रशंसकों ने वणित की है। पर उनके ऐसे बहत-से अज्ञात रूप हैं जिनकी भित्ति पर खड़े होकर उन्होंने यह गरिमा पाई है । ये उनके बाल्यकाल या विद्यार्थी जीवन के रूप हैं। ये उनकी डायरी के पन्नों से प्राप्त हए हैं। बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि अपने विद्यार्थी जीवन में वे (१) कवि. गीतकार एवं भजनकार रहे होंगे । बहुत लोगों को मालूम न होगा कि (२) वे कुशल-कृपण थे और प्रत्येक स्थिति में आय-व्यय का लेखा-जोखा रखते थे। (३) विद्यार्थी जीवन में वे अच्छे दैनंदिनी-लेखक थे। उनकी दैनंदिनी में संकलित सचनायें विभिन्न विषयों पर व्यक्तिगत विचार और समीक्षा भी रहती थी । (४) वे अच्छे पत्र-लेखक भी है । पत्र केवल बाहरी कुशल-क्षेम के प्रतीक ही नहीं हैं, वे व्यक्तियों को मानसिक और बौद्धिक दृष्टि से भी मिलाते है। पण्डित जी ने अपने जीवन में हजारों ऐसे पत्र लिखे होंगे जिनमें सैद्धान्तिक प्रश्नों के उत्तर, सामाजिक व धार्मिक समस्याओं के सम्बन्ध में विचार पूर्ण समाधान और आकांक्षायें व्यक्त की होगी। इस संकलनकार को ही उन्होंने अनेक ऐसे पत्र लिखे जो सैद्धांतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। (५) वे विचारोत्तेजक एवं सामयिक समस्याओं के समय आधुनिक दृष्टि संपन्न लेख लिखने में भी सिद्धहस्त हैं। पत्र-संपादन कला विशारद तो वे हैं ही, बुलेटिन-अनुभवी भी हैं। उनके इन रूपों की बानगी यहाँ प्रस्तुत है।
-संपादक
गीत लेखक
स्वदेश भक्ति सिंह सदृश हो शूरवीर, हम सिंह सदृश हों मानी । हों स्वदेश की रक्षा के हित, शूरवीर सेनानी ।। देशहितार्थ कष्ट सहने में, करें न आनाकानी । हम स्वदेश हित पीवें प्रतिदिन, असयोग का पानी ।।
६ फरवरी १९२० श्री बालगंगाधर तिलक को स्मृति में आठ पदों की कविता का अंश भारत मां के लाल, भाल के सुतिलक प्यारे । तिलक विलखती छोर, मात को कहां सिधारे ।। क्या स्वराज्य की शिक्षा देने स्वर्ग पधारे ? नब्य जन्म ले अथवा करने त्राण हमारे ।। या स्वराज्य नरमेघ यज्ञ में हा ! किया प्रयाण है। भारत रक्षा के लिये किया आत्म बलिदान है।
१४ फरवरी १९२० कैसी कैसी वीर प्रसूता हुई, अहो क्षत्राणी । नहीं दीखती थी यद्यपि, वे कर सदश यमरानी।। शूरा थी, जननी सपूत थीं, करते जो रिपुहानी । भारत में जिनकी प्रसिद्ध है, प्रायः सकल कहानी।। खाने को जिनके गृह में, था नहिं दाना पानी । थे स्वदेश हित देह त्यागते, कथा यथा पुरानी ।।
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