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सत्तर से गुज्जरनो घणि निणे भुजबले कीधी पोहणि घणि
नगरसेठ मेतो चांपसी, अहनिस धर्मताणि मति वसी ॥ इस तरह पावागढ़ की प्राचीनता के अनगिनत उदाहरण है। इसकी ऐतिहासिकता निर्विवाद रूप से सिद्ध है।
दो सौ वर्ष तक यह तीर्थ श्वेताम्बर जगत से अज्ञात और अपरिचित रहा। दो सौ वर्ष के बाद परमार क्षत्रियोद्धारक, चारित्र चूड़ामणि, जैन दिवाकर, शासन शिरोमणि आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज ने इस तीर्थ का पुनरोद्धार किया। पावागढ़ की तलहट में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान का भव्य और कलात्मक जिन मंदिर का निर्माण हुआ है।
पावागढ़ तीर्थ की ऐतिहासिकता
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