________________
इस अनित्य भावना के द्वारा पर और स्व का ज्ञान होता है । संसार क्या है? मैं कौन हूं? संसार से मेरा क्या सम्बन्ध है? यह सम्बन्ध कितना टिकाऊं है? आदि सभी प्रश्नों के उत्तर अनित्य भावना में मिलते हैं।
जब व्यक्ति को अनित्य भावना के द्वारा संसार की वास्तविकता का और जीवन के उद्देश्य का पता चल जाएगा, तो निश्चित रूप से मन की परिणति भी निर्मल होगी ही । सांसारिक भोग्य पदार्थों एवं कषायों के प्रति मन की निर्लिप्तता ही मन की परिणति की निर्मलता है । जब संसार की अनित्यता समझ में आएगी, तो स्वभावत: मन उनसे उपर उठेगा। यही मन की साधना
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org