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खून है । तुम्हारे होठों पर लिपस्टिक नहीं लगती है खून लगा हुआ है । शेम्पू की यह सुगंध, सुगंध नहीं है यह मूक प्राणी की चीत्कार है । यह जो तुम सॉफ्ट मीनिबेग बगल में दबा के घूमते हो, वह बेग नहीं यह खरगोश का मरा हुआ छोटा बच्चा है। जो जैन समाज अपने आपको अहिसा का पुजारी होने का गर्व रखता है उस के लिए इस प्रकार की हिंसक चीजें सर्वथा त्याज्य है । क्या महिलाएं इन चीजों का प्रयोग न करके उन मूक प्राणियों की हिंसा में सहभागी होने से नहीं बच सकती? नारी हृदय को कोमल कहा जाता है, वह दूसरे का रूदन और चीत्कार सुनकर पिघल जाती है, पर यह धारणा अब गलत हो रही है। अब महिलाओं का हृदय भी पत्थर जैसा कठोर हो गया है ऐसा लगता है उनमें से करूणा का कोई झरना अब फूटता नहीं है। आधुनिक हिंसक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग क्या उनके कठोर पत्थर हृदय होने का परिचायक नहीं है । जिसका हृदय अहिंसा और करुणा से भरा हो वह क्या अपने होठ लिपस्टिक बनाम खून के रंग से रंग सकती हैं? क्या ऐसा पुरुष शेम्पू का प्रयोग कर सकता है? जो सौंदर्य प्रसाधन जितने महंगे होते हैं, इतने ही हिंसक होते हैं। और इन चीजों का प्रयोग करने वाला चाहे पुरुष हो या स्त्री पाप के सहभागी अवश्य बनते हैं । इन हिंसक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग न करने से कोई कुरुप नहीं बन जाता। सादगी, सुरुचि और प्रकृति की ओर से मिली हुई सुन्दरता ही वास्तविक सुन्दरता है। सुन्दरता आन्तरिक गुणों के विकास से बढ़ती है न कि ब्यूटी के प्रसाधनों से । विवेक, नम्रता, मृदुता और सेवा आदि गुणों से स्वयं को सजाइए , इन गुणों से सभी आकर्षित होंगे। शेष ती भ्रम है। किसी को धोखा देना है । और इन सौदर्य प्रसाधनों का प्रयोग क्यों? किसलिए? उस शरीर के लिए जो मिट्टी का पुतला है। जो मिट्टी से बना है और मिट्टी में मिल जाएगा। जो शमशान में जलकर राख बन कर हवा में उड़ जाता है । जो बाल एक दिन सफेद होकर झड़ जाने वाले हैं। जिस चेहरे पर एक दिन झुर्रियां छाने वाली हैं। जिन आंखों से एक दिन देखना बंद होना है । जो दांत एक दिन उखड़ जाने वाले हैं । जो शरीर एक दिन जरा से जर्जरित होने वाला है, उस क्षणभंगुर, अनित्य, अस्थिर शरीर के लिए इतना परिश्रम, उसके पीछे जीवन का इतना कीमती समय गंवाने की क्या आवश्यकता है? उस नश्वर शरीर की सुन्दरता के लिए इतनी हिंसा, इतना पाप करने की क्या जरूरत है ? इस मिट्टी के पुतले को इतना सजाने-संवारने से कोई लाभ है ? क्या शरीर इसी के लिए है? क्या दुर्लभ मनुष्य देह इन कामों के लिए हैं? क्या इस पार्थिव सौंदर्य से ऊपर नहीं उठा जा सकता? शरीर मिला है, साधना के लिए। आन्तरिक गुणों के विकास केलिए । शरीर के भीतर जो अनंत निद्रा में सोया हुआ है और जो अनंत शक्ति का
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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