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भी कभी किसी के सामने बखान नहीं किया। योग्य व्यक्ति का संयोग मिलने पर प्रगट करने में कोई हानि भी नहीं, बल्कि कभी-कभी लाभ ही होता है। इधर ज्ञान और तप के संयोग की प्रतिमूर्ति गणधर गौतम छठ्ठ (बेले) के पारणे के दिन वाणिज्यग्राम नगर में भिक्षार्थ पधारे । भिक्षा लेकर जब लौट रहे थे तो जन-जन के मुख से गौतम ने श्रावक आनन्द की तपस्या-साधना और धर्माराधना का श्रद्धापूर्ण यशोगान सुना तो वे अपनी भावना को रोक न सके । वे स्वयं आनन्द के पास जा पहुंचे । गणधर गौतम को आया जान कर आनन्द के मन में अपार हर्ष लहराने लगा। शरीर तपस्या से कृश हो चुका था, स्वागतसत्कार की भावना होने पर भी वह उठ नहीं सका। क्षीणस्वर में बोला—'भंते ! उठने की भावना होने पर भी उठ नहीं सकता। सविनय-सभक्ति मेरी वन्दना स्वीकार करें ।' गौतम ने वन्दना स्वीकार की । भावपूर्वक वन्दन व चरणस्पर्श करने के बाद आनन्द ने पूछा- “भंते ! गृहस्थ को अवधिज्ञान हो सकता है।?” ।
गौतम-"हां, अवश्य हो सकता है?"
आनन्द–“तो भंते ! मुझे आपकी कृपा से वह प्राप्त हुआ है । मैं पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में ५००-५०० योजन तक, उत्तर चुल्ल-हिमवानपर्वत तक, ऊपर सौधर्म विमान तक और नीचे रत्नप्रभा के लोलुयच्युत नरकवास तक जान और देख सकता हूं।"
गौतम स्वामी ने शान्त स्वर में कहा—“आनन्द ! श्रावक या गृहस्थ को अवधिज्ञान तो हो सकता है, पर इतना लम्बा नहीं, इतने विस्तार-वाला नहीं। अत: अपने इस आलोच्य कथन की आलोचना करके जीवनशुद्धि करो।"
आनन्द ने विनीतभाव से कहा—“भगवन् ! क्या सत्य की भी शुद्धि की जाती है?" गौतम—“सत्य में मिलावट हो तो शुद्धि की जाती है।"
“तो भंते ! आप भी अपनी शुद्धि करने की कृपा करें?” नम्रस्वर में आनन्द ने कहा। गौतमस्वामी को अपने विचारों पर कुछ सन्देह हुआ। सोचा-“आनन्द १२ व्रतधारी श्रावक है। उसकी धर्मनिष्ठा की प्रशंसा स्वयं प्रभु महावीर ने की है; वह कदापि झूठ नहीं बोल सकता। अत: उसकी बात में कुछ तथ्य हो तो मुझे प्रभु से पूछना चाहिए।" गणधर गौतम चार ज्ञान के धारक थे। फिर भी उन्होंने भगवान् महावीर जैसे केवलज्ञानी- सूर्य के रहते अपने चतुर्ज्ञानरूपी दीपक का उपयोग करना उचित न समझा। वे मौनभाव से ही वहां से चल पड़े। प्रभु के चरणों में उपस्थित होते ही अपने में रही शंका की गांठ खोल कर रख दी। वे विनययुक्तस्वर में बोले—“भगवन् ! मैं भूल की राह पर हूं या आनन्द?” भ. महावीर ने स्पष्ट रूप में कहा “गौतम !
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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