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________________ व्रत ॥ ३ ॥ जो स्त्री पर विवाहिता अथवा संगृहीता होवे तिर्यंचणी, और देवी, तथा वेश्या; इनके साथ मैथुन सेवने का त्याग करे; और स्वदारा संतोष अंगीकार करे । यह चौथा स्वदारासंतोष परस्त्री विरमण व्रत ॥४ ॥ परिग्रह धन धान्यादि नव प्रकार का, तिस का स्व इच्छा प्रमाण से अधिक रखने का त्याग करे । यह पांचमा परिग्रहपरिमाण व्रत ॥५॥ षट्ही दिशा में धर्म कार्य वर्जके शेष अपने व्यापारादि वास्ते अमुक अमुक दिशा में इतने इतने योजन उपरांत नहीं जाना, ऐसा नियम अंगीकार करना । यह छट्ठा दिशा परिमाण व्रत ६ मांस, मदिरा, रात्रि भोजनादि बाईस २२ अभक्ष्य भक्षण का त्याग करे, और पंदरह प्रकार के वाणिज्य का त्याग करे, वा परिमाण करे। पंदरह वाणिज्य के नाम: - अंगारकर्म १, वनकर्म २, शकटकर्म ३, भाटककर्म ४, स्फोटक कर्म ५, दंतवाणिज्य ६, लाक्षावाणिज्य ७, रस वाणिज्य ८, केशवाणिज्य ९, विषवाणिज्य १०, यंत्रपीडा ११, निर्लांछनकर्म १२, दवदान १३, सरोवरद्रहादिशोष १४, और असतीपोष १५ इनका विस्तार जैनमत के शास्त्रों से जानना यह सप्तम भोगोपभोग व्रत ॥७ ॥ अपध्यान करना १, पापोपदेश करना २, हिंसाकारक वस्तु देनी ३, और प्रमादाचरण ४, यह चार प्रकार का अनर्थ दंड त्याग करे, यह अष्टम अनर्थदंड विरमण व्रत ॥८ ॥ सर्व संसार के धंधे छोड़ के जघन्य से जघन्य दो घड़ी तक सावद्य योग का त्याग करके धर्मध्यान में प्रवृत्त होवे । यह नवमा सामायिक व्रत ॥९ ॥ पूर्वोक्त सर्व व्रतों का जो संक्षेप करना, सो दशमा दिशावकाशिक व्रत ॥ १० ॥ चारों आहार का अथवा पाणी वर्जके तीनों आहार का त्याग करके आठ पहर पर्यंत पौषध की क्रिया करे और धर्मध्यान ध्यावे । यह ग्यारहवां पौषधोपवास व्रत ॥११॥ न्यायोपार्जित धन से जो अन्न अपने खाने वास्ते त्यार हुआ होवे, तिसमें से निर्दोष भिक्षा साधु को देवे । और अंधे, लूले, लंगड़े, आदि जो मांगने को आवें, तिनको अपनी शक्ति के अनुसार अनुकंपादान देवे । यह अतिथि संविभाग नामा बारहवां व्रत १२ ॥ इन बारह व्रतों का स्वरूप विस्तार सहित श्राद्धप्रज्ञप्ति, आवश्यक सूत्रादि शास्त्रों में है । गृहस्थ धर्मी श्रावक के अहो रात्रि के जो कृत्य हैं, सो अब संक्षेप से लिखते हैं । १२ Jain Education International श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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