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हम नत मस्तक हो जाते हैं
प्रो. श्रीपाल जैन जीवन गाथा पढ़कर आतम, हम नत मस्तक हो जाते हैं। श्रद्धा सुमन समर्पित करते, यादों में खो जाते हैं । धन्य हुई लहरा की धरती, जन्म तुम्हारा देखा जिसने । धन्य हुई रूपा माता भी, कोख में तुम को पाला जिसने ॥ गुर्वोन्न मस्तक गणेश का, जिसके तुम कहलाए लाल। विस्मय से पूछा लोगों ने, भाग्य-सितारा ‘दित्ता' किस ने ॥ किलक उठीं जीरा की गलियाँ, चूम तुम्हारा पावन पद रज । जोधमल भी पाकर तुम को नाम अमर हो जाते हैं । जीवन का संसर्ग मिला तो, बालकपन को छोड़ दिया। भरी जवानी सोलह में ही, मोह बन्धन को तोड़ दिया ॥ ज्ञान पिपासु सत्य अन्वेषक, कब तक सीमाओं में टिकता। अथक खोज में निकला ऐसा, धारा का मुंह तोड़ दिया । ललक यही थी मन में उसके, सच का दिग्दर्शन हो जाये। जागृत अध्ययनरत वह रहता, जब हम सब सो जाते हैं । बीत गए दस वर्ष भटकते, पर हताश वह नहीं हुआ था। झलक नूर की देखी जिसने, क्या निराश वह कभी हुआ था ॥ "रत्न” अमूल्य मिला फिर उसको, तृप्त हुए तब नयन निरख कर । माथा पच्ची सफल हो गई, आकर उत्तर सही हुआ था ।
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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