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खर्च पर इंगलैंड में इस पुस्तक का खूब प्रचार कराया गया। जब वह पादरी फ्रांस वापिस गया, तो ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उसे एक विशेष आजीवन पैंशन दी । ईसाई प्रचारकों को सब सुविधाएं दी जाती थीं ।सरकारी छापेखाने उन का काम मुफ्त कर देते थे ।सैनिको को यह आज्ञा दी गई की वे वर्दी पहने हुए अपने माथे पर तिलक आदि धार्मिक चिन्ह न लगाएं, दाढ़ियां मुंडवा दें और सब एक तरह की कटी हुई मूंछे रखें । बेंटिङ्क १८३२ ई. में गवर्नर जनरल बना। उस समय यह कानून बना कि जो भारतवासी ईसाई हो जाएंगे, उन का पैतृक संपत्ति पर पूर्ववत अधिकार बना रहेगा। लार्ड कैनिंग ने लाखों रुपए ईसाई मत प्रचारकों में बांटे थे। सरकारी खज़ाने से बिशपों को बड़े बड़े वेतन मिलते और उच्च अधिकारी अधीनस्थ कर्मचारियों पर ईसाई होने के लिए अनुचित दबाव डालते । पंजाब पर अधिकार हो जाने के बाद यह कोशिश की गई कि पंजाब में शिक्षा का सारा काम ईसाई पादरियों को सौंप दिया जाए । सेना में ईसाई धर्म प्रचार विशेष उत्साह से किया जाता था। धर्म परिवर्तन करने वाले सैनिकों को तत्काल उच्च पद दे दिया जाता था।
१८५७ ई. के अशांत वातावरण के बाद अंग्रेज कूटनीतिज्ञ इस बात का विशेष अनुभव करने लगे कि भारतवासियों के हृदय से राष्ट्रीयता के रहे सहे भाव भी समाप्त कर दिए जाएँ ताकि अंग्रेजी सम्राज्य की नींव सुदृढ़ रहे । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दो उपाय सोचे गए- भारत में ईसाई मत का प्रचार और अंग्रेजी शिक्षा दीक्षा । यद्यपि महारानी विक्टोरिया ने अपनी घोषणा में यह वचन दिया था कि अंग्रेजी सरकार धर्म के विषय में पक्षपात या हस्तक्षेप न करेगी, तथापि एक वर्ष के बाद ही इंगलैंड के प्रधानमंत्री ने पादरियों के एक शिष्टमंडल से कहा, “समस्त भारत में पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्खिन तक ईसाई मत के फैलाने में जहां तक हो सके मदद देना न केवल हमारा कर्तव्य है, बल्कि इसी में हमारा लाभ है।
ईसाई पादरी भारत के भोले भाले अनपढ़ लोगों में किस चालाकी से अपने धर्म का प्रचार किया करते थे, इसका कुछ वर्णन स्वामी विवेकान्द जी ने सर्वधर्म परिषद् चिकागों के अपने भाषण में किया था। उन्होंने कहा, “मैं जब बालक था, तब मुझे याद है कि भारतवर्ष में एक ईसाई किसी भीड़ में अपने धर्म का उपदेश कर रहा था। दूसरी मीठी बातों के साथ उसने अपने श्रोताओं से पूछा, 'यदि मैं तुम्हारे देवता की मूर्ति को लाठी मारूं तो वह मेरा क्या बिगाड़ सकता है।' इस पर एक श्रोता ने उलट कर उस से प्रश्न किया, 'यदि मैं तुम्हारे ईश्वर को गाली दूं, तो वह मेरा क्या कर सकता है?' ईसाई उपदेशक ने उत्तर दिया, 'जब तुम मारोगे, तब तुम्हें दंड मिलेगा।' तब उस आदमी ने प्रत्युत्तर दिया, 'ऐसे ही जब तुम मरोगे, तब तुम्हें भी मेरे देवता दंड देंगे।' उपर्युक्त वर्णन उस पृष्ठ भूमि का है जिसे सन्मुख रखते हुए हमारे १९ वीं शताब्दी के
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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