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समर्पित शासन सेवक
- आशीष कुमार जैन, जयपुर जिस समय स्याद्वाद का ध्वज गिरा जा रहा था, 'प्रधानां सर्व धमार्णां' के रूप में सुप्रतिष्ठित जिन धर्म की प्रधानता एवं ऐतिहासिकता को चुनौती दी जा रही थी, विशेषत: पंजाब में उत्सूत्रवादी आगममान्य मूर्तिपूजा का जोरदार प्रतिषेध कर रहे थे, उस विकट समय में एक ऐसे लब्ध प्रतिष्ठ कर्मयोगी का अवतरण हुआ जिसने अज्ञान एवं रुढ़िवाद के अंधकार को विदीर्ण कर अपनी उच्चारित्रता, गहन अध्ययन एवं सत्यान्वेषण के बल पर 'जैनं जयति शासनम्' का जयघोष आर्यभूमि पर ही नहीं वरन् सात समुद्र पार अमेरिका तक गुञ्जायमान करने में सफलता प्राप्त की।
पंजाब अपने पराक्रमी युगोत्तम महापुरुषों के लिए इतिहास में गौरवशाली रहा है। देश, धर्म हित बलिदान को उद्यत रहने वाली यहाँ की प्रजा को सरलता, सहजता, स्वाभिमानता, निश्छलता, वीरता, श्रमशीलता, सुगठित देहयष्टि और अतिथि सत्कार की भावना प्रकृतिदत्त वरदान के रूप में प्राप्त है। शिशुवय में दित्ता देवीदास के नाम से सम्बोधित नरकेसरी न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्री विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज भी इसी पुण्यधरा के दैदीप्यमान सूर्य थे, जिनकी गुणगरिमा को शब्दों में निरुपित करने की यह वालचेष्टा है। मन ही में वैरागी 'दित्ता'
तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों वश माता-पिता से विछोह तथा धार्मिक वृत्तिवन्त संरक्षक श्री जोधेशाह एवं स्थानकमार्गी साधुओं के प्राय: सम्पर्क रूप निमित्त से गत जन्मों के
समर्पित शासन सेवक
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