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श्री विजयानंद सूरि एवं चिकागो विश्व धर्म परिषद्
मुनि श्री रत्नसेन विजय
ईस्वी सन् १८९३ में विश्व स्तर पर सर्वप्रथम बार अमेरिका के चिकागों शहर में 'सर्व धर्म परिषद्' का आयोजन किया गया था। इस परिषद् में भाग लेने के लिए समूचे विश्व के समस्त धर्मों के प्रतिनधियों को ससम्मान आमंत्रित किया गया था ।
स्वामी विवेकानंद ने इस परिषद् में 'वैदिक धर्म' का प्रतिनिधित्व किया था ।
इस 'विश्व धर्म परिषद्' में भाग लेने के लिए जैन धर्म के प्रतिनिधि के रूप में 'पूज्य आत्मारामजी म.' को आमंत्रण मिला था ।
जैन साधु की आचार-संहिता का पालन करते हुए पू. आत्मारामजी म. का चिकागो की इस परिषद् में भाग लेना संभव नहीं था ।
पूज्य आत्मारामजी म. उच्च कोटि के विद्वान व सुविशुद्ध संयम पालक थे ।
एक ओर विश्व के रंगमंच पर विश्व के धुरंधर विद्वानों के समक्ष जैन धर्म के शाश्व सत्यों के प्रस्तुतीकरण का एक सुन्दर अवसर था... तो दूसरी ओर वहां पहुंचने में श्रमण- जीवन की सर्वोच्च मर्यादाओं के उल्लंघन का सवाल सामने खड़ा था ।
भूतकाल के इतिहास में जगद्गुरू पू. आ. श्री हीर सूरि जी म. के जीवन में अनेक प्रसंग घटित हुए हैं। 'धर्म प्रचार' के प्रलोभन में आकर भी उन्होंने कभी भी श्रमण-धर्म की मर्यादाओं
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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