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विजयानंद सूरि म. ने अपना निर्णय सुनाया :- विहार का कार्यक्रम बन गया है अब स्थगित रखना मुश्किल है।
बाबू बद्रीदास ने बहुत अनुनय-विनय की पर उनकी विनती स्वीकृत न हुई।
अन्त में दूसरे दिन छाणी जाकर उन्होंने आचार्य श्री का प्रवचन सुना और सुनकर बहुत प्रभावित हुए और कलकत्ता पधारने की आग्रह पूर्ण विनती की।
बाबू बद्रीदास जी के चले जाने के बाद एक श्रावक ने पूछा आपने इतने करोड़पति सेठ की कल की विनती को स्वीकार क्यों नहीं किया।
विजयानंद सूरि म. ने उत्तर दिया :- हम किसी श्रीमंत के गुलाम नहीं है। साहस
पंजाब के जीरा शहर में दित्ता नामका एक किशोर रहता था। वह साहसी, निर्भीक, सदाचारी और परोपकारी था। शहर के बाहर एक नदी थी। नदी में काफी पानी था। शहर के किशोरों, नवयुवकों के लिए तैराकी का वह अच्छा साधन था। शहर की महिलाएं किनारे पर बैठकर कपड़े धोती थी।
प्रात: दस बजे का समय था। दित्ता को तैरने का बहुत शौक था आज वह दस बजे ही स्नान के लिए पहुँच गया। किनारे पर एक मुस्लिम महिला कपड़े धो रही थी। पास में छोटा बच्चा था। बच्चों को पानी से बड़ा लगाव होता है। वह अपनी धुन में खेल रहा था। मां का ध्यान कपड़े धोने में था । बच्चे का पाँव फिसला वह गहरे पानी में चला गया। माँ का ध्यान गया तो होश उड़ गए। पानी इतना गहरा था कि जान का खतरा था। माँ चिल्लाई बचाओ-बचाओ, मेरा बच्चा डूब रहा है । और वह छाती पीटती हुई रोने-चिल्लाने लगी।
दित्ता ने आवाज सुनी तो उधर दौड़ा बच्चे को देखा । वह अपनी जान की परवाह किये बिना, एक क्षणे का विलम्ब किये कूद पड़ा और दूसरे ही क्षण एक हाथ में बच्चा लिए और एक हाथ से तैरते हुए किनारे आ गया।
__माता ने बच्चे को छाती से लगा लिया, और आँसू पोंछते हुए दित्ता को आर्शीर्वाद कियाबेटा, तेरी उम्र दराज हो।
यही दित्ता भविष्य में महान जैनाचार्य विजयानंद सूरि म. बने। होनहार बिरवान के होते चिकने पात
उस समय फिरोजपुर जिले में चारों और लुटरों का उपद्रव बढ़ गया था । दिन दहाड़े लुटेरे ३१२
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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