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समाप्त किया ।इस पुस्तक में जैन धर्म से संबंधित प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं। जैन धर्म का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है।
चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग-२ इस पुस्तक का प्रारंभ संवत् १९४८ पट्टी में किया गया और उसी वर्ष पट्टी में ही इसे समाप्त किया गया।
श्री आत्मारामजी महाराज के पूर्व पुस्तक चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग प्रथम के विरूद्ध तीन थुई के मुनि श्रीधन विजयजी ने उनके ऊपर कुछ अनुचित आक्षेप किए थे। उन आक्षेपों के उत्तर के रूप में यह दूसरा भाग लिखा गया है।
चिकागो प्रश्नोत्तर इस पुस्तक का प्रारंभ वि. सं. १९४९ में अमृतसर में किया गया और उसी वर्ष इसे समाप्त किया गया। ई. सन् १८९३ में चिकागों में विश्व धर्म परिषद्' हुई थी। इस परिषद में श्री वीरचंद राघवजी गांधी जैन धर्म के प्रतिनिधि बनकर गए थे। परिषद के आयोजकों ने पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज को परिषद के लिए अपना एक निबंध भेजने की प्रार्थना की थी। उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके पूज्य श्री ने 'चिकागो प्रश्नोत्तर' पुस्तक लिखकर श्री वीरचंद राघवजी गांधी को दी थी। इसमें जैन धर्म का प्राथमिक ज्ञान है।
तत्त्व निर्णय प्रासाद इस ग्रन्थ का प्रारंभ उन्होंने संवत् १९५१ में जीरा में किया था और संवत् १९५३ में गुजरानवाला (पाकिस्तान) में पूर्ण किया।
यह ग्रन्थ उनका अन्य सभी ग्रन्थों से अधिक विशालकाय है । इसमें ३६ प्रकरण है । वेद, पुराण, स्मृति और उपनिषद आदि की समीक्षा की गई है। सच्चे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप बताया गया है। गृहस्थ के सोलह संस्कार तथा दिगम्बर और श्वेताम्बर परंपरा का भी विस्तार से वर्णन किया गया है।
ईसाई मत समीक्षा यह पुस्तक एक ईसाई द्वारा जैन धर्म पर दिए गए आक्षेपों के खंडन के रूप में लिखी गई है। इस पुस्तक के पढ़ने से ज्ञात होता है कि पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज को ईसाई धर्म का कितना सूक्ष्म और विशद् ज्ञान था।
जैन धर्म का स्वरूप यह उनकी सबसे छोटी पुस्तक है । जो लोग जल्दी ही जैन धर्म के विषय में जानना चाहते २९२
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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