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भ्रांतियां फैली हुई थीं। उन भ्रांतियों को मिटाना आवश्यक था। अनेक विद्वान और लेखकों ने जैन धर्म पर आक्षेपात्मक पुस्तकें और लेख लिखे थे। उनके आक्षेपों का खंडन करना जरूरी हो गया था। लोगों को संस्कृत और प्राकृत भाषा का ज्ञान नहीं था इसलिए वे जैन धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझने में असमर्थ थे। सरल हिंदी भाषा में जैन धर्म की पुस्तकों का सर्वथा अभाव था। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए सरल हिन्दी भाषा में जैन धर्म का स्वरूप लिखना अनिवार्य हो गया था।
इन आवश्यकताओं की परिपूर्ति के लिए आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज ने हिन्दी में बारह पुस्तकें लिखी हैं ।
१. नवतत्व २. जैनतत्त्वादर्श ३. अज्ञान तिमिर भास्कर ४. सम्यक्त्व शल्योद्धार ५. जैन मत वृक्ष ६. चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग-१ ७. चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग-२ ८. जैन धर्म विषयक प्रश्नोत्तर ९. चिकागो प्रश्नोत्तर १०. तत्त्वनिर्णय प्रासाद ११. ईसाई मत समीक्षा १२. जैन धर्म का स्वरूप
नवतत्त्व यह ग्रन्थ उन्होंने संवत् १९२४ में बिनौली (उत्तर प्रदेश में लिखना प्रारंभ किया था और संवत् १९२५ में बड़ौत (उत्तर प्रदेश) में पूर्ण किया। इस ग्रन्थ में नव तत्त्वों के स्वरूप को गहनता से समझाया गया है। स्थान-स्थान पर आगमों के उद्धरण उधृत किए हैं। इस ग्रन्थ से उनके आगम विषयक असीम ज्ञान का परिचय मिलता है।
जैनतत्त्वादर्श यह ग्रन्थ उन्होंने संवत् १९२७ में गुजरानवाला (पाकिस्तान) में लिखना प्रारंभ किया था
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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