________________
आदि में जो आगम-शास्त्र संरक्षित हैं। उसके मूल प्रेरक पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज हैं। इसके लिए जैन धर्म, साहित्य, संस्कृति और इतिहास उनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकता ।
उस समय समस्त जैन समाज और धर्म एक बिखराव की स्थिति में था । प्रत्येक संघ किसी न किसी प्रश्न को लेकर विवादों से घिरा हुआ था । श्रीसंघों में संगठन का सर्वथा अभाव था । पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज ने जैन धर्म और समाज को एक विचार, एक आचार, एक धर्म और एक सिद्धान्त पर स्थिर किया । श्रीसंघों के आपसी विवादों को मिटाकर संगठन को महत्व दिया ।
जैन धर्म विषयक अज्ञानता के कारण अनेक लोगों के द्वारा चारों ओर से तीखे प्रहार हो रहे थे । स्वामी दयानंद सरस्वती जैन धर्म का घोर मिथ्या प्रचार कर रहे थे । उन्होंने अपनी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश' में एक पूरा प्रकरण जैन धर्म के विरुद्ध लिखा ।
पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज ने दयानंद सरस्वती के प्रत्येक प्रश्न और तर्क का उत्तर दिया और उनके 'सत्यार्थ प्रकाश' के जवाब में 'अज्ञान तिमिर भास्कर' ग्रन्थ लिखा ।
उस समय भारत में अंग्रेजों का शासन था । उनके द्वारा भारत में ईसाई धर्म का प्रचार अत्यन्त तीव्र गति से हो रहा था। कई जैन ईसाई धर्म स्वीकार कर रहे थे । एक गुजराती ईसाई ने जैन धर्म के विरुद्ध 'जैन धर्म समीक्षा' पुस्तक लिखी थी। उसमें जैन धर्म पर अनुचित आक्षेप किए गए थे, पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज ने इस पुस्तक के उत्तर में 'ईसाई मत समीक्षा' पुस्तक लिखी ।
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा पर स्थानकवासी और तेरापंथियों के द्वारा निरंतर प्रहार हो रहे थे । एक स्थानकवासी साधु जेठमल ने 'समकित सार' नाम की पुस्तक लिखी थी । जिसमें मूर्तिपूजा के आगम सम्मत सिद्धान्त को मिथ्या प्रमाणित करने का प्रयास किया था । इस पुस्तक के विरुद्ध पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज ने 'सम्यक्त्व शल्योद्धार' पुस्तक लिखकर उसका प्रतिवाद किया ।
शिक्षा और साहित्य के प्रति लोगों की अभिरुचि समाप्त हो गई थी। कई प्राचीन जैन मंदिर और तीर्थ भग्न हो रहे थे । उन्होंने मंदिरों के जीर्णोद्धार की प्रेरणा दी और आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी को यह कार्य सौंपा । शिक्षा और साहित्य के प्रति लोगों की रुचि उत्पन्न की ।
पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज के इन कार्यों से समग्र जैन संघ और समाज में एक चेतना और जागृति की लहर दौड़ गई। उनके आह्वान पर मृतप्राय: समाज एक बारगी ही अंगड़ाई लेकर खड़ा हो गया ।
जैन धर्म, समाज, संस्कृति, साहित्य और इतिहास के लिए पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज एक अवतार सिद्ध हुए ।
श्रीमद् विजयानंद सूरिः जीवन और कार्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
२८१
www.jainelibrary.org