________________
आहार, न स्थान । उनसे कोई किसी भी प्रकार का सम्पर्क न रखें।
__ इस पत्र का परिणाम भी कुछ नहीं आया। जितना ही उनका विरोध होता था, उतना ही वे लोकप्रिय होते जाते थे। इस पत्र के बाद भी पूर्ववत् लोग उनके पास आते रहे और उनके अनुयायी वर्ग में सम्मिलित होते रहे।
दस वर्ष तक वे निरंतर आगम सम्मत सत्य सिद्धान्त का प्रचार करते रहे । इन दस वर्षों में उन्हें सत्य की प्रतिष्ठा के लिए घोर संघर्ष करना पड़ा। इन वर्षों में उन्होंने लुधियाना, होशियारपुर, नकोदर, अमृतसर, पट्टी, कसूर, वैरोवाल, नारोवाल, जंडियाला, संखतरा, जम्मू, गुजरानवाला, जीरा, मालेरकोटला, अंबाला, लाहौर, रोपड़, जेजों, रामनगर, सरहिन्द आदि शहरों में घूम-घूम कर सात हजार श्रावकों को और पंद्रह साधुओं को अपने अनुयायी वर्ग में सम्मिलित कर लिया।
इतनी तैयारी करने के बाद उन्होंने सम्प्रदाय परिवर्तन करने का निर्णय किया।
ई. सन् १८७४ का स्थानकवासी वेश में अन्तिम चातुर्मास उन्होंने होशियारपुर में किया। वहां से वे अहमदाबाद की ओर चले। सम्प्रदाय परिवर्तन
होशियारपुर चातुर्मास के अन्त में पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज आदि सोलह साधुओं ने तीन निर्णय लिए।
(१) जैन परम्परा के प्रभाविक प्राचीन तीर्थों की यात्रा करना।
(२) गुजरात में जाकर विशुद्ध जैन परम्परा के किसी सुयोग्य मुनि को गुरु बनाकर शास्त्र सम्मत साधु वेश धारण करना ।
(३) पुन: पंजाब में आकर विशुद्ध और प्राचीन जैन परम्परा की स्थापना करना।
इस निर्णय के अनुरूप उन्होने अहमदाबाद की ओर विहार किया। सुनाम से हांसी आते हुए उन्होंने अपने मुंह पर बंधी मुंहपत्तियों का त्याग किया। वे पाली पहुंचे।
__ उस समय तक उनके कार्यों और विचारों की प्रसिद्धि भारत में सर्वत्र फैल गई थी। गुजरात में भी उनकी कीर्ति घर-घर पहुंच गई थी। अहमदाबाद में इस शुभ समाचार को पहुंचते देर नहीं लगी कि आत्माराम जी महाराज अहमदाबाद में पधार रहें हैं । जिस महापुरुष के विराट व्यक्तित्व के विषय में लोगों ने बहुत कुछ सुन रखा हो, उनके प्रत्यक्ष दर्शन की सहज ही उत्सुकता बनी रहती है। अहमदाबाद के जैनों ने पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज की अद्वितीय प्रतिभा,
२७४
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org