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इस स्तवन में उन्होंने आगे कहा है
दूर देशान्तर में हम उपने, कुगुरु कुपंथ को जाल पयों रे । श्री जिनआगम हम मन मान्यो, तब ही कुपंथ को जाल जयों रे॥ तो तुम शरण विचारी आयो, दीन अनाथ को शरण दियो रे।
जयो विमलाचल पूरण स्वामी, जनम जनम को पाप गयो रे॥ वे भावविभोर होकर परमात्मा से कहते हैं कि हे परमात्मा ! मैं अज्ञान की स्थिति में कुगुरु और कुपंथ की जाल में फंसा हुआ था। आपकी कृपा से मैंने आगमों का अध्ययन किया और उन आगम शास्त्रों का अध्ययन करने पर मुझे सन्मार्ग मिला। मुझे पता चला कि मैं असत्य पथ पर हूं, कुगुरु के जाल में फंसा हुआ हूं। मैं उस पंथ का त्याग कर अब आपकी शरण में आया हूं। आपके दर्शन कर अब मैं पार हो गया हूँ।
गुरु आतम ने परमात्मा भक्ति में तल्लीन होकर अनेक स्तवनों और पूजाओं की रचना की है। उन्होंने स्थान-स्थान पर जिन प्रतिमाओं और जिन मंदिरों की स्थापना की। शासन प्रभावना के अनगिनत कार्यों से प्रभावित होकर उन्हें पालीताणा की पवित्र भूमि पर आचार्य पद से अलंकृत किया गया।
ऐसे गुरु श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज को शत-शत नमन एवं वंदन ।
श्री जिनागम हम मन मान्यो तब ही कुपंथ को जाल जर्यो रे ।।
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